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कैसा था पापा का ना होना(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*ऐसा था पापा का न होना*

जैसे तन में श्वास का न होना
जैसे मन में विश्वाश का न होना
जैसे दीपक में तेल का न होना
जैसे पेड़ में छांव का न होना
जैसे भरे जंगल में राह का हो खोना
जैसे मारवाड़ में पानी न होना
जैसे जाड़ों में दिनकर का न होना
जैसे मां में ममता न होना
जैसे तूफान में आशियाना न होना

*ऐसा था पापा का न होना*

जैसे रिश्तों में प्यार का न होना
जैसे दोस्ती में मित्र का हो खोना
जैसे पायल में घुंघरू का न होना
जैसे गीत में सरगम का न होना
जैसे तबले में ताल का हो खोना
जैसे धरा में संयम न होना
जैसे गगन में विस्तार का हो खोना
जैसे अंबर का तारोंविहीन होना
जैसे तारों का अपनी चमक खोना

*ऐसा था पापा का न होना*

जैसे मेहंदी का अपनी लाली खोना
जैसे इंद्रधनुष में सात रंगों का ना होना
जैसे रंगोली में रंग ही ना होना
 जैसे आईने में प्रतिबिंब का हो खोना 
जैसे आग में गर्मी का ना होना 
जैसे चुंबक में खिंचाव का ना होना जैसे नैनों में ज्योति का ना होना
 जैसे पहाड़ में शक्ति ना होना 
जैसे मंदिर में मूरत ना होना 
जैसे प्रभु में श्रद्धा और विश्वास का ना होना 

*ऐसा था पापा का ना होना*

जैसे सागर में लहरों का ना होना 
जैसे नदी में बहाव का ना होना 
जैसे गंगा में पावनता का हो खोना जैसे प्रकृति में स्पंदन ना होना 
जैसे पेड़ों में हरियाली का खोना 
जैसे वाणी में मिठास का ना होना
 जैसे जीवन में सरलता सहजता का ना होना
जैसे फलों में मिठास का ना होना
 जैसे साबुन में झाग का ना होना
 जैसे हीरे में चमक का खोना 
जैसे वायु मंडल में हवा का ना होना
 जैसे दूध में सफेदी का हो खोना 
जैसे मुंह में जिह्वा का ना होना 
जैसे घड़ी में समय का न होना 
जैसे कुछ खास एहसासों का हो गया हो सोना 
जैसे जिंदगी में गति का ना होना 
जैसे भक्ति में भाव का ना होना 
जैसे वृक्ष में ठंडी छाया का ना होना 

*ऐसा था पापा का ना होना*

जैसे साहित्य में कविता का न होना
जैसे कोयल में कूक का हो खोना

जैसे हीरे में चमक का न होना 
जैसे नृत्य में ताल का ना होना 
जैसे वायुमंडल में हवा का ना होना जैसे दूध में सफेदी का ना होना
जैसे कूलर में पानी ना होना 
जैसे रात के बाद भोर का ना होना जैसे दिनकर में रोशनी का न होना जैसे किताब में अक्षर का ना होना जिसे मेहंदी का अपनी लाली खोना 
मां के माथे पर दमकती बिंदिया की सदाबहार सी चमक खोना
 मां की खनकती चूड़ियों की खनखन का खोना
मन के आईने की टूटी चमक का हर चीज में प्रतिबिंबित होना

*ऐसा था पापा का ना होना*

जैसे खिचड़ी में दाल का ना होना
 जैसे सोने में पीलापन ना होना
 जैसे विद्यालय में शिक्षा का ना होना जैसे पलंग पर बिस्तर का ना होना जैसे बिस्तर पर तकिया ना होना जैसे तकिए में रुई ना होना
 जैसे रुई में सफेदी ना होना
 जैसे सफेदी का उज्जवल ना होना 

*ऐसा था पापा का ना होना*

 जैसे सेना में जवानों का ना होना
 जैसे जवानों में देशभक्ति का जज्बा खोना 
जैसे देश भक्ति में गौरव का ना होना *ऐसा था पापा का ना होना*

जैसे माचिस की तीलियों का ना होना
जैसे खून में लाली का ना होना 
जैसे नल में पानी का ना होना
 जैसे चंदा में शीतलता न  होना
 जैसे हवा में ठंडक ना होना
 जैसे परिंदों के पंख ना होना

 *ऐसा था पापा का ना होना*

 जैसे राखी पर भाई का ना होना
 जैसे दिवाली पर पटाखों का ना होना जैसे होली पर रंगों का ना होना
 जैसे उत्सव में उमंग का ना होना
 जैसे सावन में झूलों का ना होना
 जैसे बगिया में फूलों का ना होना
 जैसे फूलों में सुगंध का ना होना
 जैसे गाड़ी में पेट्रोल का ना होना 
जैसे साइकिल में पैडल न होना
 जैसे दूध में मलाई का ना होना
 जैसे मलाई में मक्खन का न होना जैसे मक्खन का अपना स्वाद खोना  
*ऐसा था पापा का ना होना*

 जैसे नाव में माझी का ना होना
 जैसे सब कुछ होते हुए भी कुछ ना होना।
 जिसे चिता में लकड़ी का ना होना जैसे बुढ़ापे में लाठी का ना होना
 जैसे चेहरे पर लाली का कानों में बाली का हो खोना।
 जैसे सावन में बारिश का ना होना जैसे गीता में ज्ञान का ना होना
 जैसे अंतरिक्ष में यान का ना होना जैस चित में जिज्ञासा का, इंसान के लिए भाषा का ना होना।
जैसे वृक्ष पर फल का, धरा पर जल का ना होना।
जैसे सफर में दिशा ज्ञान का न होना जैसे पांव में पायल का, पायल में घुंघरू का, घुंघरू में छुनछुन का ना होना।
 जैसे माथे पर बिंदी का, मांग में सिंदूर का ना होना।
 जैसे मां की शक्ति का खोना
 जैसे हंसते हंसते आ गया हो रोना जैसे शादी में गर ना बजे शहनाई
 जैसे सावन में गर न चले पुरवाई  जैसे भात में भाई का ना होना
 जैसे गात में श्वास का ना होना
 जैसे गगन का नीला रंग खोना
 जैसे पवन का पावन ना होना 
जैसे पुष्प का सुगंधी को खोना

* ऐसा था पापा का ना होना*

जैसे जीवन में सहजता का खोना
 जैसे दिल में धड़कन का ना होना
 जैसे चिराग में ना जल रही हो बाती जैसे खो गया हो कोई सच्चा साथी।
जैसे बरखा में माटी का ना महकना  जैसे सावन में चिड़ियों का न चहकना जैसे सिर पर छत का ना होना
 जैसे पांव तले धरा का हो खोना 
जैसे बिन राह के कोई चलता हो राही
 जैसे सजनी को जब मिले ना माही जैसे चेतना का अवचेतन हो जाना जैसे भावना का जिस्म से खो जाना 
*ऐसा था पापा का ना होना*

 जैसे पुरुष में स्वाभिमान का ना होना ऐसे नारी में नारीत्व का ना होना 

*ऐसा था पापा का ना होना*

जैसे चाय में चुस्की का न होना
जैसे बादल में बारिश का खोना
जैसे साबुन में झाग का न होना
जैसे सब्ज़ी में नमक का न होना
जैसे चीनी में मिठास का हो खोना
जैसे कलम में स्याही का न होना
जैसे मंदिर में मूरत का खोना
जैसे मस्ज़िद में कुरान का न होना
जैसे परिंदे के पंख का हो खोना
जैसे जीवन मे सहजता का न होना
जैसे सागर में विस्तार का न होना
जैसे गगन में सूरज का हो खोना
जैसे चन्दा में शीतलता न होना
जैसे मटके में पानी का न होना
जैसे किताब में शब्दों का खोना
जैसे पायल में घुंघरू न होना
जैसे संगीत में सुरों का न होना

*ऐसा था पापा का न होना*

जैसे कान्हा के अधरों पर मुरली न होना
जैसे राम में मर्यादा न होना

*ऐसा था पापा का ना होना*

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