बेशक बहुत गर्म होता है सूरज,
पर उसका होना होता है बहुत ज़रूरी।
सर्वत्र अंधेरा हो जाता है रवि बिन,
पिता बिना हर इच्छा अधूरी।।
*बाजार का हर खिलौना अपना है*
गर पिता का सर पर है साया।
वो दिखाता नही कुछ,पर करता है बहुत कुछ,
पितृऋण से नही कोई मुक्त हो पाया।।
स्नेह है पिता,सुरक्षा है पिता,सहजता है पिता,हक और अधिकार है पिता।
इजहार बेशक ना हो पर अनुभूति का सार है पिता।
हमारे अतीत,वर्तमान और भविष्य तीनो के बारे में सोचने वाला होता है पिता।
आजीवन हमारी थाली में रहे रोटी,
ऐसा सदा ही सोचता है पिता।
हमारा आत्मसम्मान सदा बना रहे,
जीवन पथ अग्नि पथ ना बन कर सहज पथ बना रहे,
इसी कशमकश में सदा रहता है पिता।
करता तो बहुत कुछ है बेशक बहुत कुछ कहता नहीं पिता।।
स्नेह प्रेमचंद
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