Skip to main content

कैसे भूल जाते हैं(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

शादी के बाद अपनी पत्नी पर ऊंचा ऊंचा चिल्लाने वाले पुरुष यह कैसे भूल जाते हैं कि उनकी पत्नी कभी किसी घर की राजकुमारी रह चुकी होती है। चिल्लाना तो दूर,उसके मात पिता ने कभी उससे ऊंची आवाज में भी बात नहीं की होती है। जो तुम्हारे आगे आगे घूमती है,उसके आगे आगे उसके घर के सब लोग घूमते थे।प्रेम और इज्जत दे नहीं सकते तो उसे लाने का भी क्या अधिकार था??

जब एक पौधा भी अपने आंगन में लगाते हो,उसे धूप,पानी, हवा,खाद से ही तो महकाते हो,फिर जिसे आप ब्याह कर लाए हैं,उसके लिए तो आप की कितनी ही जिम्मेदारी बनती हैं। जरा सोचिए।।

जिससे आप पूरे घर संभालने की पूरी उम्मीद रखते हो,उसने तो शायद खाना खा कर कभी अपनी प्लेट भी रसोई में नहीं रखी होगी।वो फिर भी घर की भलाई हेतु,रिश्तों को संभालने के लिए वो सब करती चली जाती है जो उसने अपने बचपन से जवानी तक नहीं किया होता,जब वो अपने आप को इतना बदल सकती है फिर आप को  थोड़े से परिवर्तन से इतना डर क्यों लगता है????? 

उसे स्नेह के दो मीठे बोल,और नजरों में सम्मान ही तो चाहिए होता है।आपके टूटे बटन टांकने से आपने टूटे आत्मविश्वास को भी पग पग पर बढ़ाने वाली का हौंसला आप क्यों अपने कटु बोलों से घटाते रहते हो।जो व्यवहार आप अपनी बेटी के लिए कभी नहीं चाहोगे,वो अपने ससुर की बेटी के लिए करते हुए अंतरार्त्मा क्या पल भर भी नहीं धिक्कारती???


बहुत कोमल होता है नारी मन,
लफ्ज़ नहीं लहजे पहचान लेता है।
लहजों की तल्खियां जान लेता है।

तन पर चोट लगे तो नील  नजर आ जाते हैं।
पर जब मन आहत होता है तो नयनों की खामोशी कितने ही लोग पढ़ पाते हैं?????

सच में वो मर्द मर्द नहीं,
वो नारी के दर्द को जान ना सके।
अपने विकारों की गर्द झाड़ न सके।
सर्द रिश्तों को प्रेम की गरमाई से तपा ना सके,
बिन कहे नारी की जरूरतें जान न सके।।
उसे तो इतना प्रेम और सम्मान दो,वो पीहर का प्रेम भूल जाए।।

**कली तो थी वो किसी और चमन की,
पर बन सुमन उसे पड़ता है आंगन कोई और ही महकाना।
वो सब कर लेती है,बस आपकी भी जिम्मेदारी है उसके लिए,
कभी उसके कोमल चित को ठेस ना पहुंचाना**

कितना अच्छा होता गर नारी तन के भूगोल को जानने की बजाय नारी के मन के विज्ञान को पुरुष पढ़ पाता।।
उभार और कटाओं में उलझा नर,
हृदय की चौखट पर ताउम्र दस्तक नहीं दे पाता।।

अपेक्षा करता है,नारी जिम्मेदारी सारी निभाए, उसे,उसके मात पिता,बच्चे,पूरे परिवार का सौ फीसदी ध्यान रखे,बेशक उसे उस के अधिकार मिले या न मिले।
वो अपना सब कुछ छोड़ आपके साथ आती है,क्या आपका दायित्व नहीं उसके दिल को कभी ठेस ना लगे।
आपके मकान को घर बनाती है वो,
जीवन की बगिया प्रेम से महकती है वो,आपके पीछे तो अपने पीहर तक भी भूल जाती है वो।कभी ध्यान से देखना उसका बैग,जिसे ले कर वो झट पीहर चली जाती थी,अब किसी कोने में धूलि से सना पड़ा होगा।।
अपने लिए तो सोचना ही छोड़ देती है वो, पति,बच्चों और घर तक ही उसकी दुनिया सीमित हो जाती है।
उससे अपेक्षा जितनी अधिक, उसकी उपेक्षा भी उतनी ही अधिक।।
*घर की मुर्गी दाल बराबर* की मानसिकता बनाए रखना कहां तक सही है?????
जिस नाते में परवाह नहीं रहती,
वो समय से पहले ही मर जाता है।।
लोगों से हंसते हुए बात करना,
पत्नी पर चिल्लाना!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
ये दोहरे आयाम कहां तक सही हैं।मुझे तो समझ नहीं आते।
आप को आते हैं क्या?????

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

बुआ भतीजी

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व...