लफ्ज़ नहीं लहजे पहचान लेती है बेटी
बिन कहे ही मन की जान लेती है बेटी
शक्ल देख हरारत पहचान लेती है बेटी
घर आंगन दहलीज है बेटी
हर रिश्ते में सबसे अजीज है बेटी
कोमल तो है पर कमजोर नहीं बेटी
तल्ख नहीं, रूई के फाहे सी नरम होती है बेटी
पराई होकर भी सबसे अपनी है बेटी
शाम ढले जीवन की साथ खड़ी सदा होती है बेटी
थाली तो हम बड़ी जोर जोर से,
बेटा होने पर बजाते हैं।
पर जीवन की सच्ची खुशियां,
बेटी से ही पाते हैं।।
ना गिला ना शिकवा ना शिकायत कोई,
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