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क्यों नहीं मिलते अब भरत से भाई(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

क्यों नहीं मिलते 
अब भरत से भाई???
छोड़ सिंहासन,राम पादुकाएं अपने सिर पर उठाई।।
नहीं बैठे सिंहासन पर,
राम चरण पादुकाएं ही सिंहासन पर बरस चौदह सजाई।।
स्मर्पण,प्रेम और प्रीति की निर्मल मंदाकिनी बहाई।।
संन्यासी सा जीवन जीया,
कितना प्यारा था !ये राम का छोटा भाई।।

एक भरत था,था एक दुर्योधन
एक ने प्रेम की,दूजे ने घृणा की बीन बजाई।।
भरत ने नहीं लिया राज राम का,
भरत सा कहां मिलता है भाई???
दुर्योधन ने हक छीना निज भाइयों का,
हुआ महाभारत,खून की नदियां बहाई।।
शांति दूत की भी नहीं मानी उसने,
मानवता हुई थी घायल,सर्वत्र उदासी थी छाई।।
सच अब भरत से नहीं मिलते भाई।।
वन जा कर आग्रह किया अग्रज से
चलो लौट अयोध्या ,राज संभालो 
मां कैकई को माफ़ी दे दो भाई।
नही लौटे राम,दी चरण पादुका,
और रघुकुल रीत निभाई।
प्राण जाए पर वचन ना जाई।।
ये होता है नाता भाई का भाई से,
तुलसी ने मानस में समझा दी इस नाते की गहराई।।
सच में अब ना राम से,ना भरत से मिलते हैं भाई।।

यही हमारी सनातन संस्कृति है,
क्यों हमने ये पूर्णतया है भुलाई???
पूरब चला पश्चिम की ताल पर,
शिक्षा ने संस्कार को दे दी विदाई।।

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