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Mother's day Special poem((क्या लिखूं तेरे बारे में मा ??ंविचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

क्या लिखूं तेरे बारे में मां???? 
मां, तूने ही मुझे है लिख डाला।
सीमित उपलब्ध संसाधनों में भी,
 बड़े प्रेम से था ,मुझ को पाला।।
अमृत सदा पिलाया हमको,
खुद पी गई तूं गरल की हाला।।

जग से जाकर भी जो जेहन से कभी नहीं जाती है। 
हमे हमारी खूबियों और खामियों दोनो संग अपनाती है।
कोई और नहीं,मेरे प्यारे बंधु, वो मां कहलाती है।।
जिंदगी की किताब के हर पन्ने पर 
मां मुझे तो, तूं ही तूं नजर आती है।
समा गई है जेहन में ऐसे,जैसे एक सांस आती है एक सांस जाती है।।
हमारी सोच की सरहद जहां तक जाती है।
उससे भी बहुत आगे मां 
 तूं साफ साफ नजर आती है।।
मतभेद बेशक हो जाए,
पर मनभेद ना करना कभी मां से,
 वरना पूरी कायनात खफा हो जाती है।।

मां तूं ही परिधि तूं ही व्यास
आम नहीं मां थी तूं बड़ी खास
मां जा कर भी कहीं नहीं जाती,
करती है मां कण कण में वास

क्या भूलूं क्या याद करूं मां????
खुद से पहले सदा खिलाया मुझे निवाला।
क्या लिखूं तेरे बारे मां,
मां तूने ही मुझे है लिख डाला।।
वैसे तो कुछ भी करके हम कभी 
मातृ ऋण से ऊऋण नहीं हो पाएंगे।
फिर भी भूलें ना अपने कर्तव्य कर्मों को,कयामत के रोज वरना कैसे नजरें मिलाएंगे???

पूछता है जब कोई जन्नत है कहां??
हौले से मुस्कुरा देती हूं मैं,और याद आ जाती है मां।।

नाव है हम तो माझी है मां
गीत हैं हम तो सरगम है मां
दीप हैं हम तो ज्योति है मां
सीप के मुख में मोती है मां
अल्फाज हैं हम तो भाव ही मां
प्रतिबिंब हैं हम तो अक्स है मां
मंडप हैं हम तो अनुष्ठान है मां
तर्क हैं हम तो पूरा विज्ञान है मां
जुगनू हैं हम तो आफताब है मां
हर्फ हैं हम तो पूरी किताब है मां
कतरा हैं हम तो सागर है मां
सच,वात्सलय की पूरी गागर है मां
मां मंदिर में मन्नत के धागे सी है
मां हमारी जिंदगी की पतंगडोर है।
मां जीवन में आशा की भोर है।


नहीं शब्दों में वो ताकत,
ना भावों में ही वो शक्ति है,
जो मां का कर पाऊं बखान।
एक अक्षर के छोटे से शब्द में
सिमटा हुआ है पूरा जहान।
*ना कोई है ना कोई होगा*
मां से बढ़ कर कभी महान।।

मां की ममता का रंग ऐसा,
फिर कोई और रंग नहीं चढ़ पाता
मां सा सच कोई रंगरेज नहीं,
मां को रच कर सच में बेफिक्र हो गया विधाता।।

सच मां चाभी है गर हैं हम ताला।
क्या लिखूं तेरे बारे में मां
तूने ही मुझे है लिख डाला।।
*हमारा परिचय हमसे करवाती है मां*
*हमारी पसंद नापसंद से रूबरू करवाती है मां*
*हमारे कब क्यों कैसे कहां कितने का 
तत्क्षण उत्तर बन जाती है मां*
*हर संज्ञा सर्वनाम विशेषण से परिचय करवाती है मां*
*शक्ल देख हरारत पहचान लेती है मां*
*नयन पढ़ अंतर्मन की सब कुछ जान लेती है मां*
*लफ्ज़ नहीं लहजे पहचान लेती है मां*
*जीवन के हर मोड़ पर फिसलते हाथ थाम लेती है मां*
*हमे हमारे गुण दोष दोनो संग अपनाती है मां*
*जीवन के इस मरुधर में झट ठंडी छाया बन जाती है मां*
हमारी खुशियों के लिए अपनी जरूरतों को भी भूल जाती है मां
हमारे सुनहरे मुस्तकबिल के लिए,
जाने कितने ही समझौतों को अपनाती है मां
हमे ना हो कोई परेशानी,जाने क्या क्या छिपाती है मां
जमाने के सर्द गर्म से सदा ही बचाती है मां
शायद यही रहा होगा कारण 
हर धूप छांव में याद आती है मां
लाभ हो या हो हानि जीवन में,
संग खड़ी आती है मां

*मां से बेहतर मां से प्यारा हो ही नहीं सकता कोई अहसास*
*जग से जा कर भी मां सदा रहती है दिल के पास*
*शक्ति है मां, भगति है मां,मां ही शिक्षा मां ही संस्कार*
*हमारे सपनो को मां से बेहतर और भला कौन दे सकता है आकार*
*मां सा नहीं कोई पथ प्रदर्शक मां सा नहीं कोई भी शिल्पकार*
भूख लगे गर बच्चे को,
मां रोटी बन जाती है 
प्यास लगे गर बच्चे को
मां पानी बन जाती है
सबसे सुंदर होता है गीत वो
जब कोई मां लोरी गाती है।।

एक मां के ना होने से सूना लगता है 
पूरा संसार।
धरा पर ईश्वर का पर्याय है मां,
मां से ही पूरा होता है परिवार।।
मां रीढ़ पूरे परिवार की,
मां जिजीविषा का करती संचार।।

जिस घर में मां का होता है सम्मान
मेरी नजर में वो घर होता है धनवान
*सागर की गहराई है मां*
*मानस की चौपाई है मां*
*मां गीता का ज्ञान है*
*मां मानवता का अभिमान है"
जीवन में सच्ची प्रीत है मां
पर्व उत्सव उल्लास और रीत है मां
मां प्रकृति की हरियाली है
मां पर्वों में दीवाली है
मां जीवन को रंगोली है
मां अलग अलग रंगों की होली है

*मां जीवन की सबसे सुंदर कहानी है*
*मुझे जो सबसे प्रिय है वो,
मेरे बच्चों की नानी है*
*मां जैसा कोई मित्र नहीं*
*मां जैसा कोई इत्र नहीं*
*मां जैसा कोई चरित्र नहीं*
*हमारे मौन को भी पढ़ लेती है मां*
*हमारे चेतन और अचेतन दोनो ही मनों में बड़े प्रेम से रहती है मां*

लगती है गर चोट हमें तो दर्द मां को होता है
लबों से बेशक कुछ ना बोले,पर दिल उसका भीतर से रोता है
किस माटी से खुदा से मां का कर दिया निर्माण।
खुद खुदा भी मां को रच कर अपनी ही रचना पर हो गया होगा हैरान
ताउम्र पहने रखती है मां ममता का  सुंदर परिधान
तन का नहीं रूह का विषय है मां
*बच्चे से ही शुरू बच्चे पर ही खत्म होता है मां का जहान*
पर अपनी ही दुनिया में कहीं क्यों खो जाते हैं ये बच्चे नादान???

मां बन कर मां महिमा का होता है अहसास।
समय रहते क्यों नहीं समझ पाते हम,
मां होती है कितनी खास।।
*जब सब पीछे हट जाते हैं तब मां ही आगे आती है*
*अपनी औलाद की खातिर मां पूरे जग से भिड़ जाती है*
*जो उसे ना हो सका मयस्सर,
मिले उसकी औलाद को,
मां इतना सा ही तो चाहती है*

क्यों एक समय के बाद हम मां को
 देने लगते हैं उपेक्षा और तन्हाई।
क्यों वृद्धाश्रम भरे हैं आज 
खचाखच
क्यों ममता की नहीं सुनते शहनाई।।

**का वर्षा जब कृषि सुखाने**
जीते जी गर मां के ना सके हम काम
कैसे उसके दूध का ऋण चुका पाएंगे हम,व्यर्थ हैं फिर सारे तीर्थ सारे धाम।।

दो दस्तक जरा अतीत की चौखट पर,
थोड़ा बचपन के लम्हों को दो आवाज।
वो पल भर भी अकेला नहीं छोड़ती थी हमको,कितना मधुर कितना प्यारा ममता का साज।।
फिर हम क्यों ढोंग रचा मसरूफियत का,कर देते हैं उसको नजरंदाज।
एक बार खुद की बात कराओ खुद से,
आत्ममंथन के बाद उठेगी दिल से आवाज।।

मां को दो मधुर बोल और थोड़े समय की ही होती है दरकार।
क्यों भूल जाते हो सारा समय सारी परवाह उसकी थी बस तुम्हारे लिए ही, 
मां कुदरत का सबसे अनमोल उपहार।।
कौन सा दिवस वैसे बिन मां के है???
मुझे तो मातृ दिवस लगता है अजीब सा अहसास।
एक मां ही तो ऐसा नाता है जग में,
जो दूर हो कर भी मन के अति होती है पास।।
हर दिन मातृ दिवस है बस मां का हो दिल में अहसास।।

और परिचय क्या दूं मां तेरा?????
धड़धड़ाती हुई ट्रेन से तेरे वजूद के आगे,थरथराते हुए पुल सा अस्तित्व है मां मेरा।
शब्दों से अधिक दोस्ती नहीं मेरी, वरना बता पाती तूं जीवन का सबसे उजला सवेरा।।
जीवन पथ ना बने अग्निपथ हमारा,
ला देती है उजियारे ज्ञान के जीवन में,हटा अज्ञान का बुरा अंधेरा।।
    स्नेह प्रेमचंद


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