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Showing posts from June, 2022

कुछ लोग

चल लेखनी

अति खास

मां जाई

याद तो जब आए

बाज़ औकात

कोई नहीं सुनता फरियाद

पाप से घृणा करो

तुम पथिक हो

कब बड़े होते हैं हम

वही देखते हैं

वो सब सुनती थी

अक्सर यादों में

भाई बहन

तुरपाई

फर्क पड़ता है(( vichar sneh premmchand dwara))

दौलत आये दौलत जाए, क्या फर्क पड़ता है। शोहरत मिले न मिले, क्या फर्क पड़ता है। यहाँ रहो, वहाँ रहो, क्या फर्क पड़ता है। कम हो अधिक हो, क्या फर्क पड़ता है। कोई आये कोई जाए, क्या फर्क पड़ता है। पर माँ बाप जाते हैं, तो फर्क पड़ता है। भेदभाव होता है, तो फर्क पड़ता है। अपने पराये हो जाएं तो फर्क पड़ता है।।

काश समय रुक जाता

साहित्य

साहित्य

उठ लेखनी

तन्हाई

जब भी कोई

करुणा जरूरी है

कई बार

यह तो तय है

रिश्ते कैसे भी क्यों ना हों