Skip to main content

व्याधि विकार नष्ट हो जाएं सारे(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

योग प्राथमिक है जीवन में,
सांसों की माला में सिमरें प्रभु का नाम।
 व्याधि विकार नष्ट हो जाएं सारे,
 योग आए अब जन-जन के काम।।

 योग में ही छिपा हुआ है आध्यात्मिक शक्ति का अक्षय भंडार।
 सीमित रहेगा गर क्षेत्र इसका,
 तो आध्यात्मिक चेतना का ना हो पाएगा प्रसार।।

 एकांगी स्वरूप से ना हो संतुष्ट इसके, संपूर्ण स्वरूप को करे योग सदा आत्मसात।
 आसन, प्राणायाम ही योग नहीं है, अष्टांग योग से आएगी नई प्रभात।।

 नहीं वर्ग विशेष की है ये धरोहर,
 धनी निर्धन सबका इस पर अधिकार। पहुंचा जन-जन तक पैगाम अनोखा, हुआ मानव को योग से सच्चा प्यार।।

 योग आयुर्वेद का हो जीवन में अधिकाधिक प्रचार-प्रसार।
 वैदिक संस्कृति की हो पुनर्स्थापना
 हो जीवन का सुदृढ़ आधार।।

मानवता का हो संरक्षण,
 स्वास्थ्य का हो सही संवर्धन।।
 चले ना एक ही ढर्रे पर हम,
लाएं जीवन में समुचित परिवर्तन।। 

प्राथमिकताएं तय करने में और ना करे अधिक विश्राम।
योग प्राथमिक है जीवन में, सांसों की माला में सिमरें प्रभु का नाम।।

 प्राचीन परंपराओं को ना भूलें,
रखे प्राकृतिक सौंदर्यीकरण का भी हम ध्यान।
 जड़ी बूटियों को करके संग्रहित,
 रोग निवारण, कर पाएं आसान।।
 
योग प्राथमिक है जीवन में,
सांसों की माला में सुमरे प्रभु का नाम।।
संपूर्ण अष्टांग योग अपनाने से ही,
रहेंगे स्थिर योग महता,उपादेयता,क्षमता चमत्कार।
यम,नियम,आसन,प्राणायाम,प्रत्याहार
धारणा, ध्यान,समाधि 
कैसे करें इनकी महता से इंकार???

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व...

बुआ भतीजी