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न तेरहवीं ना छमाही (विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

 ना तेरहवीं,ना छमाही,ना बरसी,
ना ही होता 
यादों का कोई अंतिम संस्कार।
यादें तो यादें हैं बस, 
बड़ा विहंगम और गहरा होता है इनका संसार।।

ना नॉर्मल ना सिजेरियन डिलीवरी होती है यादों की,
यादें तो सांस सांस लेती हैं जन्म।
चीस भी देती है चबका भी देती हैं यादें,
हैं यादों के अपने के ही कर्म।।
हृदय सिंधु में जब आती है सुनामी यादों की,
एक जलजले की चलती है बयार।
अवरुद्ध कंठ,सजल नयन,धुआं धुआं सा चित,मिलते हैं उपहार।।

11 स्वर और 33 व्यंजन भी कम है जो चित,उनका कर पाए बखान।
**संकल्प से सिद्धि तक**
 कार्य सच में ही वे कर गए महान।।
**उच्चारण से आचरण तक**
 सच रहे वे ईश्वर का वरदान।।
,**प्रयास से उपलब्धि तक** के सफर से नहीं रहे वे कभी अनजान।।
नहीं लेखनी में वो ताकत 
जो कर पाए उनका गुणगान।।
न किया कभी कोई गिला न की शिकायत ना शिकवा कोई,
सच में सही मायनों में थे वे जाने वाले अति महान।।
तिजोरी से चुरा ले गया कोहिनूर कोय,
नहीं रहे हम सच धनवान।।
जिंदगी भले ही छोटी रही हो उनकी,
पर छोटी सी जिंदगी में काम कर गए अति महान।।
घर में बेशक सबसे छोटी पर औरा सबसे बड़ा उनका,
क्या क्या करूं उनका गुणगान?????
हानि धरा की लाभ गगन का,
यही लगता है उनके बिछोडे का सार।
ना तेरहवीं,ना छमाही,ना बरसी ना ही होता है यादों का कभी अंतिम संस्कार।
इनका सफर तो श्वास श्वास का है,
जुड़े होते हैं दिल के दिल से तार।।

**जब धड़कन धड़कन संग बतियाती है,
फिर हर शब्दावली अर्थ हीन हो जाती है।
फिर मौन मुखर हो जाता है
ये दिल का दिल से इतना गहरा नाता है।।
उन्हें चोट वहां पर लगती थी,
मुझे दर्द यहां पर होता था,
जग से बेशक चले गए,
पर जेहन से कभी नहीं जा सकते वे
कोई कोई तो हमारी सोच का  अहम हिस्सा बन जाता है।

वे सच में ही निकले डिप्लोमेट,
जो हौले से फिसल गए वक्त के लम्हों से,पर निभा गए उम्दा अपना हर किरदार।
मां का अक्स नजर आता है मां जाई में,
अपनों से कितना प्यारा होता है परिवार।।
एक अरदास यही बस ऊपरवाले से,
मिले शांति तेरी दिव्य दिवंगत आत्मा को,
प्रेम सुता !
प्रेम ही रहा आजीवन तेरे हर रिश्ते का आधार।।
        स्नेह प्रेमचंद

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