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**दो दूर देश के पयिकों ने संग संग चलना किया स्वीकार**

दो वंश मिले,दो पुष्प खिले,
दो सपनो ने आज ही के रोज किया था श्रृंगार।
दो दूर देश के पथिकों ने बरस 58 पहले,आज ही तो संग संग चलना किया था स्वीकार।।

प्रताप जी के जीवन में आ कर सुनहरी जी ने सब कुछ ही स्वर्ण सा सुनहरा कर डाला।
प्रेम चमन में खिले फिर तीन पुष्प
**सुमन रमेश सुरेश** तीनों को दोनो ने मिल कर बड़े प्रेम से पाला।।
बढ़ता गया फिर यह परिवार वृक्ष,
हौले हौले होता गया गुलजार।
बरस 58 कैसे बीत गए पता ही नहीं चला,
प्रेम की ऐसी शीतल चली बयार।।

**स्नेह सुमन खिले चमन में,
रहे महकते बारंबार।
सब से धनवान होते हैं बच्चे,
जब मिलता है मात पिता का प्यार।।
आज आपकी वर्षगांठ पर मिले,
आपको दुआओं का उपहार।
सुख,समृद्धि,स्वास्थ्य की दौलत आपको मिले सदा अपार।।

बड़ा शीतल सा होता है साया मात पिता का,
हर तपिश फिर जीवन में आने से कर देती है इंकार।
हम रहते हैं सदा ही छोटे उनके होते हुए,
करते हैं प्रेम वे हमे बेशुमार।
कभी झांक कर देखना उनकी आंखों में,
आएगा नजर बस प्यार ही प्यार।।
ताउम्र देते ही तो रहते हैं वे हमे,
कभी किसी चीज के लिए नहीं करते इनकार।।
उन्हें क्या चाहिए हमसे,सिर्फ और सिर्फ थोड़ा सा समय और मीठे बोल का मधुर व्यवहार।।
आज बहुत ही खास दिन है आप दोनो का,रहे जिंदगी आप की यूं ही गुलजार।।
   दिल की कलम से

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