वेद, योग और आयुर्वेद की दिव्य त्रिवेणी जब बहती है*
कर लो अर्जित जो कर सकते हो, पावन धारा यह कहती है।।
*विस्तृत सोच और विस्तृत विकास* **समग्रता का है योग में वास**
नहीं व्यक्तिगत लाभ ही उद्देश्य योग का,
*वसुधैव कुटुंबकम*नारा बने खास
*रोगों को समूल मिटाता है योग*
* जीवन में आनंद बढ़ाता है योग*
* नहीं पलायन वादी संस्कृति का नाम है योग*
*आत्मा को पावन बनाता है योग*
*जीवन को सही राह दिखाता है योग*
*अंधेरे में उजियारा लाता है योग*
*निराशा को आशा में बदलता है योग*
*Body, Mind और soul को सच में निखार देता है योग*
* अंधेरे की किरण जगाता है योग* *अपनाएं योग भगाए रोग*
इसी सोच से होगा विश्वकल्याण। जागरूकता की ऐसी चलेगी आंधी,
जर्रा जर्रा ले प्रकृति का इसे पहचान।।
योग प्राथमिक है जीवन में,
सांसों की माला में सिमरे प्रभु का नाम।
व्याधि विकार नष्ट हो जाएं सारे
योग आए अब जन जन के काम।।
स्नेह प्रेमचंद
Comments
Post a Comment