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तूं इस तरह से(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

 इस तरह से मेरी ज़िंदगी मे शामिल है,
जैसे शक्कर में मिठास हो,
जैसे राही को मन्ज़िल की तलाश हो,
जैसे प्रकृति में हरियाली हो,
जैसे तरूवर पर कोयल काली हो,
जैसे दिल मे धड़कन होती हो,
जैसे नयनों में ज्योति हो,
जैसे माला में मोती हों,
जैसे कुसुम में मीठी महक हो,
जैसे चिड़िया की प्यारी चहक हो,
जैसे माथे पर हो बिंदिया
जैसे थकान के बाद हो निंदिया,
जैसे कूलर में हो पानी,
जैसे राजा के लिए रानी,
जैसे माँ के लिए नानी,
जैसे शवास के लिए है समीर,
जैसे सागर में होता है नीर,
जैसे रघुवर थे धीर गंभीर,
जैसे पतंग के लिए होती है डोर,
जैसे रजनी के बाद होती है भोर,
जैसे दिनकर में होता है ताप,
जैसे इंदु में शीतलता का राग,
जैसे संगीत में हों सुर सात
जैसे ज़िन्दगी के लिए है वात,
जैसे माँ में ममता होती है,
जैसे पिता में क्षमता होती है,
जैसे गंगा की हो निर्मल धारा,
जैसे शब्दों ने भाव को हो पुकारा।।
जैसे सुर में सरगम
जैसे दिल में धड़कन
जैसे साहित्य में कविता
जैसे बहाव में सरिता
जैसे पतंग में डोर
जैसे पहर में भोर
जैसे पर्वों में दीवाली
जैसे गीता में ज्ञान
जैसे राधा का श्याम
जैसे नाव में पतवार
जैसे नाटक में किरदार

नहीं होगा अंत उपमाओं का,
जब चलती है लेखनी तेरे बारे में
मां जाई।
प्रेम सुता हूं,इतना तो जानती हूं,
तूं जीवन की सबसे मधुर शहनाई।।
        स्नेह प्रेमचंद


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वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

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सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व

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