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कुछ रह तो नहीं गया????(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कुछ रह तो नहीं गया लाडो????

पीहर से ससुराल जाती बिटिया से जब पूछा मां ने,ठिठक गए कदम लाडो के,सजल नयनों से देखा मां को,अवरुद्ध कंठ से बोली बिटिया
कुछ??????? नहीं,बहुत कुछ रह गया मां मेरा,बोलो क्या लौटा पाओगी???
दूंगी दस्तक गर मैं बचपन की चौखट पर,क्या दरवाजा खोलने आओगी??????

बनाती हूं जब फेरहिस्त मैं,
 एक लंबी सी फेरहिस्त तैयार हो जाती है।
मां मेरे बचपन की हर बात मुझे,
सच में,दिल से बड़ी भाती है।।
आज आप की ये लाडो चलो,
बातें पूरी बताती है।।

रह गया **मेरा प्यारा बचपन** जब मैंने इस आंगन में आंखें खोली थी।
रह गई वो मधुर सी गुंजन,
जब मैं पहली बार *मां* बोली थी।
रह गई **मेरी वो गुडिया** मां जिसकी तूने सिली थी फ्रॉक और मैंने चोटी बनाई थी।

रह गई वो दहलीज देहरी,
जहां मैने कई बार रंगोली सजाई थी।।
रह गई वो सहजता,चंचलता,
वो उन्मुक्त हंसी जो तेरे साए तले पाई थी।।
रह गया वो तेरे वात्सल्य का झरना,
जिसमे मैं बचपन से भीगती आई थी।।
रह गया वो जाड़े की गुनगुनी धूप में घंटो अलसाना,
वो पापा को देख कर  मेरा यकायक मुंह फुलाना,
जानती थी मां,पापा को आता है अपनी राजकुमारी को मनाना।।

रह गई मेरी अलमारी और कमरा मेरा,जहां मैं बड़े चैन से सोती थी।
रह गई मेरी ऐसी यादें,
जब जी चाहे हंसती और जी चाहे रोती थी।।

रह गया **मेरा पापा संग वो रूठना मनाना**वो उनका मनुहार कर मुझे बड़े प्रेम से खाना खिलाना,मेरी हर पसंद की चीज दिलाना,मेरे सपने पूरे करने के लिए अपनी जरूरतें भी भूलते जाना,
मां बहुत अहसास रह गए मेरे,किस किस की गिनती करवाऊं????
हर बात कह सकूं मैं दिल की,
ऐसे भाव और शब्दावली कहो मैं कहां से लाऊं?????

रह गया **मेरा भाई से लड़ना झगड़ना,
फिर मान जाना,वो उछलना कूदना,वो मस्ती करना,वो सागर किनारे माटी के घरौंदे बनाना**
रह गया वो तेरा घंटो मेरा इंतजार करना,तेरा वो हाथ पकड़ मेरा घंटों बतियाना,वो चूल्हे की रोटी वो सरसों के साग की खुश्बू,वो मेरे आंगन की माटी की सौंधी सौंधी सी महक,मेरी बेफिक्री,मेरी अल्हडता,मेरी उन्मुक्त सी हंसी ठिठोली,वो बर्फ के गोले,वो मुरमुरे की चाट, वो गली की कुल्फी,वो इमली के बूटे,वो बेरी के बेर,वो आम खेत के,वो मुंडेर पर लगी माटी में सनी मूलियां,वो बारिश में नहाना,वो कागज की किशती बनाना,वो भुने गुड चने,वो चूल्हे की रोटी,वो बैंगन का भरता,वो गन्ने की गडेरी, वो जाड़े में आंगन की धूप सुनहरी,वो आंगन में झूले,वो पेड़ नीम का, वो ऊनसिलाई,वो हारे का दूध,वो लाल सी लस्सी,वो आमों की पेटी,वो आलू के चिप्स,वो मोटा मरुंडा,वो हलवाई के समोसे,जो बड़े प्रेम से थे तूने परोसे,वो सखियों का मेरे घर पर आना,वो संग उनके घंटों बतियाना,वो साइकिल चलाना,
क्या क्या गिनवाऊ मां??????
क्या लौटा पाओगी????
दूंगी जब दस्तक मैं बचपन की चौखट पर,
क्या किवाड़ खोलने आओगी????
     स्नेह प्रेमचंद

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