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कहीं नहीं जाते लेखक(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))


कहीं नहीं जाते लेखक,
फिज़ा में विचरण करते रहते हैं उनके विचार।
लेखनी लेखक की, गवाह है बीते लम्हों में हुए अगणित अनुभवों की,
खट्टे मीठे अनुभव होते हैं उसकी सोच का आधार।।

लंगोट से कफन तक के सफर का नाम ही तो है जिंदगानी।
एक बात आती है समझ में,
जिंदगी और कुछ भी नहीं,है सिर्फ तेरी मेरी कहानी।।
चलती रहती है ये कहानी आगे भी,
बस बदलते रहते हैं किरदार।
लेखक कहीं नहीं जाते,
फिज़ा में विचरण करते रहते हैं उनके विचार।।

पुत्र,भाई,पति,पिता समय संग
बदलते रहते हैं किरदार।
हर मोड़ पर सिखाती है कुछ न कुछ जिंदगी,हर नई चुनौती करनी पड़ती है स्वीकार।।
कुछ मिलते हैं कुछ बिछड़ते हैं जिंदगी के सफर में,
आजीवन संग खड़ा रहता है परिवार।
बहुत अजीज होती हैं बेटियां पिता को,
प्रेम ही है इस नाते का आधार।।
कौन कहता है पराई होती हैं बेटियां
बेटियां तो पिता का होती हैं पूरा संसार।।
लेखक कहीं नहीं जाते,
फिज़ा में विचरण करते रहते हैं उनके विचार।।
           स्नेह प्रेमचंद

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