Skip to main content

ऐसा था पापा का ना होना(( विचार स्नेह प्रेमचंद रोहिल्ला द्वारा))

तन में शवास का न होना,
जैसे मन मे विशवास का हो खोना,
जैसे दीये में तेल का न होना,
जैसे तरूवर का छाँव को हो खोना,
जैसे मरुधर में जल का न होना,
जैसे जंगल मे राह का हो खोना,
जैसे शीत में सूरज का न होना,
जैसे तूफां में छत का हो खोना,
जैसें मां का बिन ममता के होना,
जैसे प्रकृति में हरियाली का खोना,
ऐसा था पापा का न होना।।।।।।।

जैसे रिश्तों में प्रेम का न होना,
जैसे दोस्ती में दोस्त का हो खोना,
कैसे पायल में घुँघरु का न होना,
जैसे गीत में सरगम का खोना,
जैसे सुर में ताल का न होना,
जैसे धरा का धीरज को खोना,
जैसे गगन का तारों विहीन होना,
जैसे तारों का अपनी चमक खोना,
जैसे पुस्तक में अक्षर का न होना,
जैसे वक्ता का श्रोता को खोना,
जैसे भाजी में नमक का न होना,
जैसे हिना का लाली को खोना,
जैसे इंद्रधनुष का सतरंगी न होना,
जैसे आईने में प्रतिबिम्ब का खोना,
जैसे आग में गर्मी का न होना,
जैसे चुम्बक में आकर्षण का खोना,
जैसे नयनों में ज्योति न होना,
जैसे पहाड़ में सख्ती का खोना,
जैसे मन्दिर में मूरत का न होना,
जैसे भगति में श्रद्धा,विश्वास का हो खोना,
ऐसा था पाप का न होना।।

जैसे सागर में लहरों का न होना,
जैसे नदिया में बहाव का न होना,
जैसे प्रकृति में स्पंदन न होना,
जैसे पेड़ों में हरियाली का खोना,
जैसे वाणी में मिठास का न होना,
जैसे जीवन मे सरलता,सहजता का खोना,
जैसे फलों में मिठास का न होना,
जैसे साबुन में झाग का न होना,
जैसे हीरे में चमक का हो खोना,
जैसे वायुमंडल में हवा का न होना,
जैसे दूध में सफेदी का न होना,
जैसे मुख में जिह्वा न होना,
जैसे सुर में सरगम का खोना,
जैसे घड़ी में समय का न होना,
जैसे ज़िन्दगी में गति का हो खोना,
जैसे भगति में भाव का न होना,
जैसे वृक्ष का छाया को खोना,
ऐसा था पापा का न होना।।

जैसे नृत्य में ताल का न होना,
जैसे निशा के बाद भोर का न होना,
जैसे दिनकर में तेज का हो खोना,
जैसे कूलर में पानी न होना,
माँ के माथे पर दमकती बिंदिया की,
सदाबहार सी चमक को खोना,
मन के आईने की टूटी चमक का,
हर शै में प्रतिबिंबित से होना,
ऐसा था पापा का न होना।।

जैसे खिचड़ी में दाल का न होना,
जैसे सोने का पीलापन खोना,
जैसे विद्यालय में शिक्षा न होना,
जैसे पंछी के पंखों का खोना,
जैसे पलंग पर बिस्तर न होना,
जैसे बिस्तर पर तकिया न होना,
जैसे तकिए में रुई का खोना,
जैसे रुई में सफेदी न होना,
जैसे सफेदी का उज्ज्वल न होना,
ऐसा था पापा का न होना,
कितना मुश्किल था उनको खोना।।
              स्नेहप्रेमचंद

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व...

बुआ भतीजी