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प्रेम सौगात(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))



**जिंदगी खूबसूरत है अगर 
हम सफर का साथ हो**
 **जिंदगी प्रेम भरी है गर हिवड़े में प्रेम और हाथों में हाथ हो**
**जिंदगी श्रेष्ठ है अगर हमारा हमसफर हमारा सबसे अच्छा मित्र हो**
** जिंदगी द बेस्ट है अगर इस नाते में प्रेम से पहले सम्मान हो**
** जिंदगी धरा पर ही स्वर्ग है अगर लबों पर मधुर वाणी,हिया में प्रेम, नजरों में सम्मान, लहजो में नरमी और नाते में अपनत्व की गर्मी हो।

मैग्गी and अनुग्रह प्यारे! बच्चों!
 ईश्वर ने आपको उपरोक्त सभी खूबियों से नवाजा है सच में बहुत भाग्यशाली हैं आप।।

एक परी किसी रोज बड़े जोश से 
उतरी प्रेम आंगन में,इंदु की ज्योत्सना छिटकी,मां सावित्री की कृपा बरसी,मेघा भी जैसे स्नेह सुमन की बरखा करने को आतुर हो गए,सुहानी सी छटा बिखरी, चारू चितवन हुई,लम्हे बीते,परी बड़ी हो गई,बाबुल ने हाथ पीले करने की ठानी और लाडो जाने को त्यार है।।
 
जाति मजहब से ऊपर ढाई अक्षर प्रेम की भाषा को अंतर्मन की गहराइयों से समझकर सारा जीवन एक दूजे के नाम कर दिया। प्रेम सुता हूं बहुत अच्छे से जानती हूं प्रेम के चश्मे से सारा जग सुंदर और अपना लगने लगता है।।

 परिणय की इस मंगल बेला पर कर लेना हमारी दुआएं स्वीकार
 जीवन की हर खुशी मिले मैगी और अनुग्रह आपको,
विवाह में दो व्यक्ति ही नहीं,
जुड़ते हैं दो परिवार।।

 एक नहीं सात जन्मों का है यह बंधन सम्मान, प्रेम, समर्पण, परवाह और विश्वास इस मधुर से नाते का आधार।।
 **कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार**
 यही मूल मंत्र है सफल वैवाहिक जीवन का,
कर लेना यह सत्य दिल से स्वीकार।।
 राहें होंआसान हर सफर की संग हमसफर के,
 यही दुआएं हैं आज के दिन आप दोनों के लिए उपहार।।
 बुआ और भतीजे एक ही आंगन की होती है खुशबू,
महकाती है आंगन बाबुल का और साजन का घर द्वार।।

 प्रेम क्या है??!??
 वैसे तो प्रेम मापने का कोई निर्धारित पैमाना है नहीं पर जब भरी भीड़ हो और केवल वही नजर आए शायद इससे बेहतर प्रेम मापने का कोई  पैमाना नहीं।।

 कोई शस्त्र नहीं कोई शास्त्र नहीं
 कोई व्यवसाय नहीं कोई सिद्धांत नहीं कोई तर्क नहीं कोई वितर्क नहीं 
प्रेम तो है बस सबसे सुंदर एहसास जाने कब, क्यों, कैसे की इसमें कोई जगह नहीं,
 प्रेम तो जैसे तन से श्वास।।

 **मैगी जा रही है जिस्म से जैसे जान जा रही है**
 एक बेटी बहन भतीजी भांजी धेवती पोती सहेली जा रही है,
 पीहर से जा रही है दिलों से नहीं
 जा रही है,तो अनेक नए अटूट रिश्तो के मीठे बंधन में भी तो बनने जा रही है।

हो बात जो उनके जाने की,
ये नयन सजल तो होने थे
 पर मिला उसे जो अनुग्रह जैसा हमसफ़र,
 फिर राह मधुर तो होने थे।।

 आज के खास मांगलिक अवसर पर मेरे अंतर्मन की गहराइयों से लिखी रचना जो शायद हर बेटी और उसके माता-पिता के दिलों की चौखट पर दस्तक दे ही देगी ।

रचना का शीर्षक है 

*पीहर से जाती हैं बेटियां पर दिलों से कभी नहीं जाती**
 कौन सी ऐसी भोर सांझ है जब वे याद नहीं आती।।
मात पिता अपने कालजे की कौर को दिल पर पत्थर रख रुखसत करते हैं,
बस एक आरजू रहती है उनकी,
उनकी लाडो को कभी कांटा ना चुभे
यही जुस्तजू हमारी है आपके सुनहरे मुस्तकबिल के लिए।।

हर खुशी हो मयस्सर आपको,
महरूमियत के ना हों कभी दीदार।
सहज भाव से मिल जाए सब,
मशक्कत का ना खटखटाना पड़े द्वार।।
सौ बात की एक बात है
प्रेम ही हर रिश्ते का आधार।।
     स्नेह प्रेमचंद

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