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भेज रहा हूं स्नेह निमंत्रण(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

भेज रहा हूं स्नेह निमंत्रण,
तूं बिन दस्तक के आ जाना।
मां बाबुल नहीं तो क्या,
मैं तो हूं ना! 
दुविधा कोई ना मन में लाना।।
मां जाई से गहरा नाता और भला क्या होता होगा????
ये नाता तो जीवन का 
सबसे मधुर तराना।।

नए रिश्तों के नए भंवर में
 माना हम उलझ से जाते हैं।
पर पुराने नातों को जड़ों सा गहरा,
अंतर्मन के गलियारों में पाते हैं।।
इन जड़ों को स्नेह रस से सींचने
 मेरी मां जाई तूं आ जाना।
भेज रहा हूं स्नेह निमंत्रण
तूं बिन दस्तक के आ जाना।।

मां बाबुल नहीं तो क्या, *मैं तो हूं ना*
देख कोई दुविधा ना कभी मन में लाना।।

मां थी जब तूं इतनी दूर से भी
 कैसे भाग भाग कर आती थी।
दो दो बच्चों की मां हो कर भी,
तूं मां संग फिर बच्ची सी हो जाती थी।
तेरे आने से मां भी कैसे बरस सोलह की हो जाती थी।
उसके चेहरे की रौनक उसकी आंतरिक खुशी दिखाती थी।
कैसे मन से उपहारों का
 वो ढेर तेरे सामने लगाती थी।
हौले से तेरा हाथ थाम कर,
तुझे भीतर ले जाती थी।
ऐसा निश्चल पावन प्रेम देख
 मेरी आंखें नम हो जाती थी।।
**ना मां थकती थी ना तूं थकती थी**
तुम दोनो घंटों घंटों बतियाती थी।।
उन बातों की यादें सहेजने ही,
फिर उसी आंगन में आ जाना।
जहां जिंदगी का परिचय हुआ था मां जाई अनुभूतियों से,
उसी दहलीज पर फिर से आना।
**कुछ पुरानी स्मृतियां ले जाना**
कुछ पुरानी एल्बम को धूप लगाना
भेज रहा हूं स्नेह निमंत्रण,
देख मेरी बहना आ जाना।।

नहीं कर सकता मुकाबला मैं मात पिता का,
फिर भी पूरा करूंगा प्रयास।
बस तूं फिर वो आंगन महकाने आ जाना,
जो तेरे आने से बन जाता है खास।।
ये कोथली,ये राखी,ये भात
**हस्ताक्षर हैं बहन बेटी के मायके प्रेम का,
वरना कमी नहीं होती किसी के पास।।
ये घेवर के घेरे हैं प्रेम पीहर का,
ये  सवाली ये पापड़ हैं यादें अतीत की,इनसे सच में आती है नातों में मिठास।
**दस्तावेज हैं ये उन जज्बातों का,
हो ताउम्र एक मीठे बंधन की बांधते हैं आस।।

सबसे लंबा सबसे प्यारा होता है भाई बहन का नाता।
बस प्रेम और परवाह से हो दोनो को इसे निभाना आता।।
देख देखूंगा मैं बाट तेरी,
इस स्नेह निमंत्रण को ना तूं ठुकराना।।
मां बाबुल नहीं हैं तो क्या,
देख मैं तो हूं ना,
गिला शिकवा ना कोई मन में लाना।।
माना कई बार अपने कटु शब्दों से
मैने आहत  किया होगा तेरे मन का कोई न कोई कोना।
पर कर याद उसे मां जाई,
तूं नयनों को ना अपने भिगोना।।
देख बचपन में भी लड़ कर हम
फिर पहले जैसे ही जाते थे,
जिजीविषा कर लेती थी आलिंगन सहजता का,और हम कोई मन में ग्रंथि नहीं बनाते थे।।
अल्फाजों से मेरी थोड़ी कम है दोस्ती,
पर भावों का है मेरे पास खजाना।
तूं तो नयन पढ़ने में माहिर है,
तूं बिन दस्तक ले आ जाना।।
भेज रहा हूं स्नेह निमंत्रण
देख मेरी जीजी आ जाना।।
*नेहर की महक लेने आ जाना*
*सौंधी सौंधी माटी की महक जो
अपने श्वाषों में भर जाना*
*बचपन के झोले में से कुछ लम्हे चुरा कर ले जाना*
*कुछ अनमोल दुआएं दे जाना*
*कुछ मधुर स्मृतियां ले जाना*
भेज रहा हूं स्नेह निमंत्रण
तूं बिन दस्तक के आ जाना।।

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