सावन बोला भादों से,"इस बार तूं कुछ ज्यादा ही गीला गीला सा लगता है ये मात्र पानी ही नहीं,ये तो सजल नयनों का जैसे दरिया सा बहता है"
भादों बोला," किसी के लब बोलते हैं, किसी के नयन बोलते हैं,मेरा चित तो इस बरखा में बरस बरस जैसे सब कुछ कहता है।।
सावन भादों भी जान गए हैं, अब तुझ सा अजीज इस धरा पर नहीं रहता है।।
**हानि धरा की लाभ गगन का**
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