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हौले हौले(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

हौले हौले शनै शनै
 दिन ये एक दिन आ ही जाता है।
कार्यक्षेत्र से हो निवृत इंसा,
लौट फिर घर को आता है।।

ज्वाइनिंग से रिटायरमेंट तक,
इंसा पल पल बदलता जाता है।।
जाने कितने ही अनुभव तिलक जिंदगी के भाल पर लगाता है।।
कभी खट्टे कभी मीठे अनुभव,
हर एहसास से गुजरता जाता है।
हर घडी रूप बदलती है जिंदगी,
संग संग व्यक्ति भी बदलता जाता है।। 

जीवन की इस आपाधापी में पता ही नहीं चलता, कब आ जाता है समय रिटायरमेंट का,
व्यक्ति यंत्रवत सा चलते जाता है।
जिम्मेदारियों के चक्रव्यूह में घुस तो जाता है अभिमन्यु सा,
पर बाहर निकलना नहीं उसको आता है।

**शो मस्ट गो ऑन**
इसी भाव से आगे बढ़ता जाता है।।
शादी,बच्चे,परवरिश बच्चों की,मात पिता की जिम्मेदारी सब सहज भाव से निभाता है।।
इसी दौर ए कश्मकश में,
सफर जिंदगी का चलता जाता है।।
हौले हौले शनै शनै
 दिन ये एक दिन आ ही जाता है।।

**आज घर की ओर चला घर का बागबान**
अब ना वक्त की होगी कोई पाबंदी,
समय का हो जाएगा धनवान।।
महफिल यारों की,बाजी ताशो की,
पुरानी फिल्मों से जिजीविषा का करना आह्वान।।
प्रकृति की हरियाली को निहारना,
लगेगा जीवन जैसे वरदान।।
दिल ढूंढेगा फिर वही फुर्सत के रात दिन,लम्हा लम्हा छू लेगा संतुष्टि का पायदान।।

*जाड़ों की धूप में खूब अलसाना*
*अब अपनी ख्वाइशों के पंख लगाना*
*हर शौक को अपने पूरा करना*
*अब होगा मुठ्ठी में तेरे जमाना*
पढ़ना अच्छा सा साहित्य,
और खास जगह पर घूमने जाना।।

जिंदगी इतनी भी छोटी नहीं होती,
बस हम सही से जीना देर से करते हैं शुरू,वक्त कैसा भी हो,बीत ही जाता है।
कल तक तो ढूंढते थे नौकरी,
आज समय सेवानिवृति का जिंदगी की चौखट पर दस्तक दे जाता है।।

मिले अच्छा स्वास्थ्य तुझे भाई,
बना रहे तेरा मधुर व्यवहार।
महकती रहे डोर तेरे श्वाशो की,
हो प्रेम ही तेरे हर नाते का आधार।।

प्रेम पुत्र हो,प्रेम सुता की आज कर लेना ये दुआ स्वीकार।
अधिक तो नहीं आता कहना,
पर जुड़े हैं तुझ से दिल के तार।।

मित्र हम चुनते हैं पर खून के रिश्ते
ईश्वर चुनता है कभी ना करना उन्हे दरकिनार।
वे जगह से दूर हो कर भी दिल के बहुत ही पास होते है,
मतभेद बेशक हो जाएं पर मनभेद का कभी खुले ना द्वार।।

मेरी मां का लाडला है तूं भाई,
सुख,समृद्धि से भरा रहे तेरा संसार।
जिस आंगन का पुष्प है तूं,
उसी आंगन की मैं भी हूं डाली,
हो जीवन तेरा सदा ही गुलजार।।

देती हूं जब तुझे दुआएं,
हो जाते हैं सजल नयन और अवरुद्ध कंठ,चित प्रफुल्लित हो जाता है।
हौले हौले शनै शनै दिन ये एक दिन आ ही जाता है।।
         स्नेह प्रेमचंद


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