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वही मित्र है(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*मुस्कान के पीछे की जो पढ़ ले उदासी,वही मित्र है*

*बिन कहे ही जान ले जो मन की,
वही मित्र है*

*धूप छांव में जो संग खड़ा हो,
वही मित्र है*

*रोज बेशक मुलाकात हो ना हो,
पर जब भी मुलाकात हो उसमे बात हो,वही मित्र है*

*दिल की बात कर सकें खुल कर जिन से,वही मित्र है*

*हाला के प्याले छलकाने वाले मित्र हों,ज़रूरी नहीं,छलकते गम को जो खुशी में बदल दे, वही मित्र है*

*मित्रता का मतलब मात्र शराब शबाब, कबाब की त्रिवेणी बहाना नहीं है*

*जब कोई कष्ट की घड़ी आए,जो संग खड़ा हो,वही मित्र है*

*मित्र हर हाल में साथ नहीं छोड़ता*

*मित्र मात्र हंसने हंसाने के लिए ही 
नहीं होते,दुख की घड़ी में कांधा देने के लिए अधिक होते हैं*

*एक अच्छे मित्र ने वेद बेशक ना पढ़े हों परंतु अपने मित्र की वेदना जो बिन बताए जान लेता है,वही मित्र है*

*राघव और सुग्रीव* सी हो दोस्ती
जहां हर हाल में दिया दोनो ने एक दूजे का साथ
भगवान होते हुए भी थाम लिया वानर का हाथ**

*माधव और अर्जुन*सी हो दोस्ती,
जहां माधव ने मोहग्रस्त पार्थ को दिया था गीता ज्ञान।
अर्जुन का परिचय करवाया उसकी 
अनंत क्षमता से,दोस्ती थी पार्थ के लिए वरदान।।

*माधव सुदामा सी* हो दोस्ती जहां धनी निर्धन का भेद नहीं था
की सहायता सुदामा की,माधव का ये कृत्य कितना सही था।।


*कर्ण दुर्योधन* सी ना हो दोस्ती,जहां हर कदम पर कर्ण ने गलत दुर्योधन का साथ दिया था।।

दोस्ती गलत का साथ देना नहीं,
दोस्ती हमारे भीतर गलत को निकाल कर सही का बीजारोपण करना है।

*पथभ्रष्ट को राह दिखाना दोस्ती है*

हमारे भीतर छिपी अनेक संभावनाओं को सही से उजागर करना दोस्ती है।।

*हमारी कमियों को जान कर उन्हें दूर करने में मदद करना दोस्ती है*

*दोस्ती प्रेम है,परवाह है,विश्वास है*

दोस्ती बहुत पावन नाता है,भले ही खून का नाता नहीं,परंतु समर्पण प्रेम विश्वास से भरे इस नाते पर गर्व होता है।सही मायनो में वही धनवान है जिसके अच्छे मित्र हैं जो सलाहकार पथप्रदर्शक और सहायक होते हैं।।

*तूने सदा माधव सी दोस्ती निभाई*
हर ली चिंता तूने अपने हर मित्र की,जब भी किसी पर घड़ी कष्ट की आई।।
सच में तूं ऐसा सोना था जो तप तप बन गई थी कुंदन,
पत्थर को भी जो बना दे सोना,
ऐसे पारस की संज्ञा तूने पाई।।
उम्र से नहीं सोच से बड़ी थी तूं,
समझ से तो बचपन में ही हो गई थी तेरी सगाई।।
       स्नेह प्रेमचंद

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वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

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सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व

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