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आजादी का अमृत महोत्सव(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

**आजादी का अमृत महोत्सव**
 बड़ी धूमधाम से आओ मनाएं।
आजादी के सही मायने गण और तंत्र दोनो को ही समझ में आएं।।

माना ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिले तो आज हो गए हमे पूरे 75 साल।
पर क्या खुद को आजाद कर पाए हम रूढ़ियों,अंधविश्वास और पुरातन कर्मकांडी परम्पराओं से????
आज भी निरूतर है ये यक्ष सवाल।।

शौक भले ही पूरे ना हों पर जब तक पूरे तंत्र की आधारभूत जरूरतें पूरी नहीं होती,हम सही मायनों में आजाद नहीं कहला सकते।।

मेरे दृष्टिकोण से तो मुझे आजादी के यही मायने समझ में आते हैं।
जब हर वर्ग चढ़े **विकास की सीढ़ी पर**
जब सर्वत्र शिक्षा के उजियारे आते हैं।।

**अज्ञान के रावण पर जब ज्ञान के राम विजय पताका फहराते हैं**
आलौकित हो जाता है प्रांगण हर मन मंदिर का,प्रगति की राह फिर अपनाते हैं।।

**आजादी का अर्थ है**
 अपना आत्मावलोकन कर आत्म मंथन करना और फिर उस विषय पर केंद्रित हो कर भरपूर प्रयास करना,अपने भीतर छिपी अथाह, असीमित,अनंत संभावनाओं को जान कर उनका नित नित संवर्धन करना! 

हर प्रकार के भय से आजादी ही सच्ची आजादी है **सब निर्भय हों सब सुखी हों** तो रोज ही आजादी का महोत्सव है।।
देश की बेटी हर कोने में खुद को महफूज समझने लग जाएगी तो यही आजादी है।।

विकारों और व्यसनों से मुक्त होना भी आजादी है।।

अधिकारों संग जिम्मेदारी का भी बोध होना आजादी के ही मायने हैं।।

संकल्प से सिद्धि तक के पीछे छिपे प्रयासों को जब खुली हवा में सांस लेना आ जाए,वो आजादी है।।

अभिव्यक्ति को इजहार मिलना आजादी है।।

सबको समान अधिकार मिलना आजादी है।।

अधिकारों के प्रति जागरूकता और जिज्ञासा आजादी है।।

 गौरवमयी अतीत,सुखद वर्तमान,उज्ज्वल भविष्य की त्रिवेणी निर्बाध गति से बहती रहे,यही आजादी है।।

अपनी प्रतिभा और रुचि को जानकर उसी दिशा में लगन,जोश, जज्बे और जुनून से काम करना आजादी है।।

किसी के दबाव या प्रभाव की बजाय अपनी आंतरिक शक्तियों को पहचान कर मेहनत का शंखनाद बजाना आजादी है।।

अहम से वयम की ओर चलना आजादी है।।

कतार में खड़ा अंतिम व्यक्ति भी जब आधारभूत जरूरतों से वंचित ना रहे,समझ लेना सबको आजादी मिल गई।।

शिक्षा के भाल पर संस्कार का तिलक लगना आजादी है।।

जाति, लिंग,रंग,धर्म के आधार पर भेद भाव ना करना आजादी है।।

**हम सबके हैं सब हमारे हैं,सर्वेभवन्तु सुखिना और वसुधैव कुटुंबकम भावना ही आजादी है।। ्क्क्क्क्क्क्क्क्क्क्क्क््क्क्क्क्क्क्क्क्क्क

शिक्षा,चिकत्सा,रोटी कपड़ा और मकान से कोई महरूम ना रहे,इस भाव से बढ़ कर तो आजादी की कोई परिभाषा हो ही नहीं सकती।।

जब तक विचारों की आजादी नहीं आएगी सोच कर्म परिणाम की त्रिवेणी नहीं बह सकती।।

मां,मातृभूमि और मातृभाषा जब तक इन तीनो को पूरा सम्मन नहीं मिलेगा 
आजादी जिंदगी की दहलीज पर दस्तक नहीं देगी।।

सपने देखने और उन्हे पूरा करने की सबको आजादी मिले।

आज आजादी के अमृत महोत्सव की पावन बेला पर मंथन करने से यही समझ में आता है।
बहुत कुछ कर लिया है पर बहुत बहुत कुछ करना अभी बाकी है,
यही आजादी से हर हिंदुस्तानी का सच्चा नाता है।।

भारत मां का स्थान तो जन्म देने वाली मां से भी ऊंचा है।
मातृभूमि का ऋण चुकाना है तो अपनी सोच को बदलना होगा।

भष्टाचार मुक्त भारत बनाना होगा,जहां अमीर गरीब का भेद भाव ना हो,सबल निर्बल का हाथ थाम ले,सबको शिक्षा और रोजगार मिले,
कहीं अपराध जन्म ना ले।।
सही मायनों में आजादी आ जाएगी।।

श्वेत केसरिया और धानी रंगों का अर्थ वास्तव में सार्थक हो जाएगा।।
आजादी की बहुत बड़ी कीमत अदा कर चुके हैं हम।जाने कितनी मांओं ने वारे हैं लाल मां भारती पर,कितनी मांगें हो गई हैं सूनी।।पर मां भारती के मान को हानि नहीं आने दी।।अंत में यही कहना चाहूंगी
** अपनी आजादी को हरगिज मिटा सकते नहीं** जय हिंद
        स्नेह प्रेमचंद



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