मित्र रूप में कान्हा की है संग सुदामा के,
बड़ी ही प्यारी ,सबसे न्यारी,अद्भुत कहानी।
ऊँच नीच न भेद न जाना
अपने सखा को तुरंत पहचाना।
कहा द्वारपालों को खोलो किवाड़
था पक्का उनका दोस्ताना।।।
आवभगत की ऐसी सुदामा की
युग आने वाले भी भूल न पाएंगे।
जब भी होगी मित्रता की चर्चा
गोविंद सुदामा की कहानी गुनगुनाएंगे।।
बिन कहे ही मित्र के हृदय की
गोविंद जान गए थे बात।।।।
कितना अपनत्व,कितना प्रेम था उस मिलन में
भूले भी न भुलाई जाएगी वो मुलाकात।
युग आएंगे,युग जाएंगे
पर सुदामा कान्हा की दोस्ती भूल न पाएंगे।।
प्रेमवचन का तो यही मानना है,आप को क्या लगता है????
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