आये थे हरि भजन को,
ओटन लगे कपास।
प्रमुख को गौण, गौण को प्रमुख बना दिया हमने,
सही दिशा में नही किया प्रयास।।
ज़िन्दगी बीत गयी सारी,
खुद की खुद से ही नही हो पाई मुलाकात।
औरों को कैसे जानेंगे हम,
नहीं जानते जन अपनी बिसात।।
यही भय खाता रहा उम्रभर,
लोग क्या कहेंगें।
जिन लोगों को तनिक भी नहीं चिंता हमारी,
वो हमारे जीने के सलीक़े के फार्म कैसे भरेंगे???
इसी उधेड़बुन में बीत गई उमरिया सारी की सारी।
जब तक आए रास्ते समझ
जीवन के सफर के,
सफर के ही पूरा होने की आ गई बारी।।
एक आपाधापी में बीती उमर सारी,
लगा,क्यों करी हमने नादानी।।
जिंदगी और कुछ भी नहीं,
सच में है तेरी मेरी कहानी।।
ये हो जाएगा तो ये हो जाएगा,
रह गए यूँ ही लगाते कयास।।।
आये थे हरि भजन को,ओटन लगे कपास।।
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