सातों सुर पड़ जाते है फ़ीके,
जब कोई माँ लोरी गाती हैं।
माँ के आँचल में है वो पूर्णता,
पूरी कायनात नजर वहां आती है।।
मा बना दे जो भी रोटी,
वो प्रसाद बन जाती है।
माँ की हर चितवन होती है चारु,
मा खुशियाँ ही खुशियाँ सहेज कर लाती है।।
आती है गर कोई परेशानी,
मां तत्क्षन ही समाधान बन जाती है
हर क्यों, कब, कैसे, कितने का
मां उत्तर बन जाती है।
हर संज्ञा,सर्वनाम और विशेषण
से मां ही बोध कराती है
मैने भगवान को तो नहीं देखा
पर जब जब देखा मां की ओर,
ईश्वर की छवि साक्षात नजर आती है।।
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