तुरपाई
रिश्तों की उधड़ी तुरपन की,माँ करती रहती है तुरपाई।
ममता के दीपक में उसने,सदा करुणा की अलख जलाई।।
संभालती है उन्हें,सहेजती है उन्हें,
पर लबों पर कभी अपने उफ्फ तक न लाई।।
रिश्तों की उधड़ी तुरपन की .........................तुरपाई।।
प्रतिफल उसे मिले न मिले
पर दुआओं में उसके कमी न आई।।
ममता के दीपक में करुणा की सदा ही उसने अलख जलाई।।
कर्म की खिचड़ी रही पकाती,न बोली,न रोई, न चीखी,न चिल्लाई।।
रिश्तों की उधड़ी तुरपन की माँ करती रहती है तुरपाई।।।
Comments
Post a Comment