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कभी झांकना अम्बर से(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कभी झांकना अम्बर से धरा पर,
देखना पूनम ने छोड़ दिया उजियारा।
कहने को तो चल रही है जिंदगी
पर अस्त हो गया है हमारा सितारा।।

कभी झांकना अम्बर से धरा पर देखना,प्रकृति ने खो दी है हरियाली।
बागों में भी पंचम स्वर में कूकना
भूल गई है कोयल काली।।
आरुषि भी सुस्त सुस्त है,
उषा के कपाल भी हैं अब बिन लाली।।
चांद भी है कुछ रोया रोया सा,
ज्योत्सना भी नहीं लगती अब मतवाली।।

कभी झांकना अम्बर से धरा पर,
देखना आफताब भी पड गया है पीला पीला।
गगन भी लगता है उदास उदास सा,
नहीं अब वो पहले सा है नीला।।

कभी झांकना अम्बर से धरा पर, देखना, सागर की लहरों को,
आती तो हैं बड़े जोश से साहिल पर,
पर छोड़ उदासी के कतरे, 
फिर हौले से लौट जाती हैं।
इसी उधेड़बुन में जाने कितने ही चक्कर लगाती हैं।।

कभी झांकना अम्बर से धरा पर,
देखना इंद्रधनुष के सातों रंग हैं फीके फीके से और हर रंगोली भी लगती बेजान।
सातों सुर भी स्तब्ध से हैं मां जाई,
जिजीविषा भी हैरान परेशान।।

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