कैसी होती हैं बहनें?????
बहुत ही अपनी,
बहुत ही प्यारी होती हैं बहनें।
प्रेम की स्याही से
अपनत्व का ग्रंथ लिखती हैं बहनें।
भाई बहन के सबसे लंबे रिश्ते को स्नेह से निभाती हैं बहनें।
दुश्मनी का दलदल प्रेमाग्नि से सुखाती हैं बहनें।।
द्वेष दावानल प्रेमजल से
बुझाती हैं बहनें।
कलह का कीचड़ हटा सौहार्द
का कमल खिलाती हैं बहनें।
कटुता की कालिख मिटा कर मधुरता का तिलक लगाती हैं बहनें।
नफरत के कांटे हटा कर,
सदभाव सुमन खिलाती हैं बहने।
ईर्ष्या,द्वेष की दुर्गंध हटा कर, सहिष्णुता सुगंध फैलाती हैं बहने।
नफरत आँधी प्यार से रोक देती हैं बहने।
अपनत्व की अखण्ड ज्योत जलाती हैं बहने।
प्रेममण्डप में अपनत्व का अनुष्ठान हैं बहने।
स्नेह की कावड़ में मीठे रिश्ते का मधुर सा जल हैं बहने।
सहजता का पर्याय हैं बहने,
जीवन में सबसे सही राय हैं बहनें।।
विनम्रता की अँखियों में करुणा का काजल हैं बहने।
प्रेम गगन में सहजता की बारिश हैं बहनें।
सरलता और सहजता की झंकार हैं बहनें।
निष्ठा की कड़ाही में प्रेम का छौंक हैं बहनें।
मुसीबत की घड़ी में सच्ची परछाई हैं बहनें।
प्रेम की मटकी में करुणा का माखन हैं बहनें।
विश्वास की सब्ज़ी में आस का हरा धनिया हैं बहनें।
जीवन में मधुर सा संगीत हैं बहनें।
पर्व है,उल्लास है,समाज है,रीत है बहनें।
बहनें कभी कुछ लेने नही आती,
बस चाहिए उन्हें प्रेम भरे बोल,केवल प्रेम।
वो तो दे ही जाती हैं दुआओं का
कभी खत्म न होने वाला बड़ा सा पिटारा।
ढूंढती है अपने बचपन की परछाई उस आंगन में,
ढूंढती हैं माँ बाप के सानिध्य की सौंधी सौंधी महक,
वो सहजता,वो चिंता रहित सा मन,वो जाड़े की धूप में बेफिक्र होकर अलसाता सा तन,वो लड़ना,झगड़ना,पर फिर एक हो जाना।
जब इतनी खास होती हैं बहनें,
तो कहीं कहीं क्यों होता है इनका तिरस्कार।
वो तो हैं प्रेम और सम्मान की अधिकारी,
यही सिखाता है राखी का त्योहार।।
बहनें तो ममता का वो सागर हैं,
जहाँ सदा ही प्रेमजल के होते हैं दीदार,
मातपिता की सबसे अनमोल निशानी
शायद होती है बहन की ही कहानी,
भाई का दायित्व है ये,है उसकी ये ज़िम्मेदारी,
मात पिता के बाद उसी स्नेहदान की
आ जाती है उसकी बारी,
हंसते हंसते बड़े प्रेम से उठाए वो ज़िम्मेदारी
जाने कब आ जाये शाम जीवन की
कोई मलाल न बने कोई चिंगारी।।
बात छोटी पर अर्थ बड़ा है,
यही सिखाता यह त्योहार।
आओ सब मिल कर
इस त्योहार का
अपनत्व से करें श्रृंगार।।
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