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धन्य है कला धन्य है कलाकार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*धन्य है कला,धन्य है कलाकार*
बिन अल्फाजों के भी बहुत कुछ कह देता है चित्रकार।।

कर्म ही असली परिचय पत्र होते हैं व्यक्ति का,वरना एक ही नाम के व्यक्ति तो होते हैं हजार।।

हर रंग हर चित्र कुछ कहता है
अनुभूति को मिल जाता है इजहार।।
खास नहीं अति खास बन गया है ये समूह *हमारा प्यार हिसार*

जनकल्याण है मूल में इसके,
अहम से वयम की चलती है इसमें बयार।।
स्वच्छ धरा हो स्वच्छ हो अम्बर
कर्म का सदा समूह ने किया श्रृंगार।।

अपना घर तो सब चमकाते हैं,
पर पूरा शहर जो नित नित चमका रहा है वो *हमारा प्यार हिसार*

उच्चारण नहीं आचरण में है विश्वास इसका, सुंदर सोच से रंग दी शहर की हर दीवार।
धन्य है कला और धन्य है कलाकार।।
     स्नेह प्रेमचंद

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