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हानि धरा की लाभ गगन का

*हानि धरा की लाभ गगन का*
यही तेरे बिछोड़े का है सार।
जानती भी थी तूं मानती भी थी,प्रेम ही हर रिश्ते का आधार।।

सुन गगन के चंद्रमा!!
बहुत मधुर रहा सदा उसका व्यवहार।।
क्रम में सबसे छोटी पर कर्म में सबसे बड़ी,
निभा गई अपना हर उम्दा किरदार।।

नजर ही नहीं नज़रिया बदलना जिसे आ जाए,
वो अच्छा शिक्षक कहलाने का है हकदार।
इस फेरहिस्त में तेरा नाम शीर्ष पर आता है मेरी दिलदार।।

बचपन में तुझे कहते थे उपदेश न,तूं शुरू से कुछ ना कुछ सिखाती थी।
हैरानी को भी हो जाती थी हरनी,इतना ज्ञान कहां से मां जाई तूं लाती थी।।

उम्र अनुभव और संस्कारों की कभी नहीं होती मोहताज।
तुझे जान यह सत्य सिद्ध हो जाता है मां जाई।
सबको तो नहीं आता करना दिलों पर राज।।

प्रतिबिंब कहूं तुझे तो कोई अतिशयोक्ति ना होगी।
सबको अक्स नजर आता था तुझ में,तुझ सी मां जाई कोई और ना होगी।।
तूं जाने क्या क्या सिखा गई??
कथनी से नहीं ओ लाडो!
 तूं करनी से समझा गई।।

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