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सदियों से बीते हैं लम्हे(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

 सदियों से बीते हैं लम्हे,
ना जाने कैसे बीता है ये युग सा साल।
सच में जीवन में नहीं मिलता कोई
तुझ सा पुर्सान ए हाल।।

कौन कहता है वक्त सब घावों का मरहम,क्या कुछ कर पाया ये गुजरा साल????
दुख ही नहीं तेरे जाने का तो है जी में मलाल।।

क्रम में सबसे छोटी घर में, पर कर्म में सबसे बड़ी तूं,सच तेरा तो औरा ही था बड़ा कमाल।
तेरे आभामंडल का सदा रहा ऐसा  वायुमंडल,आक्सीजन प्रेम की दी सदा सबको,सच तूं थी बेमिसाल।।

रह रह कर ऐसे याद आती है तूं,
जैसे चाय में आते हों उबाल
जिंदगी के आरंभ से प्रारंभ था अहसास ए वजूद तेरा,
इसे जेहन से कैसे सकती हूं निकाल???
तूं तो जा कर भी नहीं गई मां जाई,
सच मेरे ही नहीं जाने कितने दिलों का है ये हाल।।



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