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हौले हौले

*हौले हौले शनै शनै*
 दिन,ये एक दिन आ ही जाता है।
कार्यक्षेत्र से हो निवृत्त इंसा,
लौट फिर घर को आता है।।

ज्वाइनिंग से रिटायरमेंट तक
 इंसा पल-पल बदलता जाता है।
जाने कितने ही अनुभव तिलक जिंदगी भाल पर लगाता है।।

 कभी खट्टे कभी मीठे अनुभव,
 हर एहसास से गुजरता जाता है।
हर घड़ी रूप बदलती है जिंदगी
 धीरे धीरे समझ में आता है।।

 जीवन की इस आपाधापी में 
पता ही नहीं चलता, 
कब आ जाता है समय रिटायरमेंट का,
 व्यक्ति यंत्रवत सा चलते जाता है।।

 जिम्मेदारियों के चक्रव्यूह में घुस तो जाता है अभिमन्यु सा,
 पर बाहर निकलना उसे नहीं आता है।।
 *शो मस्ट गो ऑन* इसी भाव से आगे बढ़ता जाता है।।

 शिक्षा, शादी,बच्चे,परवरिश, जिम्मेदारी मात-पिता की,
 सब हंसते हंसते सहज भाव से निभाता है।
 *कुछ बंधन भी होते हैं मीठे*
 इन बंधनों में बधने में आनंद ही उसको आता है।।

 पल, पहर,दिन,महीने, साल बीत कर एक दिन यह दिन आ ही जाता है। कार्यक्षेत्र में कार्यकल हो जाता है पूरा, समय अपना डंका बखूबी बजाता है।।

 हौले हौले, अनेक अनुभव अपने आगोश में समेटे इंसा,
 60बरस का हो जाता है।
 हो सेवानिवृत्त कार्य क्षेत्र से,
कदम अगली डगर पर फिर से बढ़ाता है ।।
हौले हौले, शनै शनै,
 दिन ये दिन आ ही जाता है।। 

*आज घर की ओर चली घर की बागबान*
अब वक्त की न होगी कोई पाबंदी,
समय की भी हो जाओगी धनवान।।

जिंदगी का *स्वर्ण काल* 
माना हम कार्यक्षेत्र में बिता देते हैं।
पर शेष बचा जीवन भी होता है *हीरक काल*
ये क्यों समझ नहीं पाते हैं????

सेवानिवृत होने का मतलब कभी
नहीं होता क्रियाकलापों पर पूर्ण विराम।
किसी अभिनव पहल या दबे शौक को बाहर आने का मिल सकता है काम।।

करना शौक सारे पूरे अब अपने,
जिंदगी है चलने का नाम।।
शबनमी शबनमी सी आगे की भी जिंदगी रहे आपकी शबनम जी,
अच्छे स्वास्थ्य और खुशहाल जीवन का आप को मिले इनाम।।

 यही दुआ यही तराना आज मेरा दिल,दिल से गुनगुनाता है।
हौले हौले शनै शनै दिन ये एक दिन आ ही जाता है।।

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