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तन संग मन की गर्द झाड़ लें(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

तन संग मन की भी गर्द झाड़ लो,
इस बार दीवाली में।
शुद्ध विचारों की ज्योत जला लो
इस बार दीवाली में।।
महलों संग झोंपड़ी में भी हों उजियारे,
इस बार दीवाली में।।

कोई राग ना हो,कोई द्वेष ना हो
कोई कष्ट ना हो,कोई क्लेश ना हो
अवसाद न हो,कोई विषाद न हो
मन के भीतर हों प्रसन्नता के उजियारे।
जरूरतें तो पूरी हों सब की,
सहजता का दीप जले हर चौखट और हर गलियारे।।
शुभ दीपावली होती ही तब है जब सब हों खुश,ऐसा कुछ हो जाए इस बार दीवाली में।।
काम,क्रोध,ईर्ष्या,निंदा के तमस को हर ले कोई इस बार दीवाली में।
मन हर्षित और तन प्रफुल्लित हो
इस बार दीवाली में।।


       स्नेह प्रेमचंद

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