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संस्कारों की पाठशाला है समूह हमारा प्यार हिसार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*संस्कारों का विद्यालय नहीं महाविद्यालय* है समूह *हमारा प्यार हिसार*
यहां हर उम्र के लोग करते हैं कर्मों का सच्चा श्रृंगार।।

कर्म ही असली परिचय पत्र होते हैं व्यक्ति का,वरना एक ही नाम के व्यक्ति होते हैं हजार।।
कर्म की दीप्ति से दमकता है हर चेहरा यहां,बड़ा ही प्यारा है ये संसार।।

मात्र अक्षर ज्ञान ही नहीं होता शिक्षा का उद्देश्य,
शिक्षा भाल पर तिलक लगाए संस्कार।
उच्चारण में नहीं आचरण में विश्वाश है इसका,
कर्तव्य कर्म ही इसकी सोच का आधार।।

विद्यालय नहीं महाविद्यालय है संस्कारों का,समूह हमारा प्यार हिसार।
और कहीं फिर क्यों हो जाना,
हो जाते हैं जब यहां खुशियों के दीदार।।

आनंद से जब किया जाता है कोई भी कर्म फिर वो आनंद उत्सव बन जाता है।
बोझ नहीं रहता फिर कर्म कोई,वो उल्लास का द्वार खटखटाता है।।
यही विशेषता है इस संगठन की,
जिक्र भी इसका जेहन में खुशियां लाता है।।

राष्ट्र प्रेम के बो बीज ये समूह खास नहीं अति खास बन जाता है।
मेरी छोटी सी समझ को तो यही समझ में आता है।।
             स्नेह प्रेमचंद

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