**चलो ना इस बार**
धनतेरस पर कुछ ऐसा खरीद कर लाते हैं
हर चेहरे पर खिले मुस्कान,
मायूसी को दूर भगाते हैं।।
जरूरत भी नहीं होती जिनकी पूरी,
उनकी ओर हाथ बढ़ाते हैं।
अपने लिए तो लेते ही हैं सदा,
चलो इस बार उन्हें दिलवा कर,
सच्ची खुशी खरीद कर लाते हैं।।
लेने से नहीं,देने से मिलती है सच्ची खुशी,सबको यह फलसफा समझाते हैं।।
चलो ना इस बार धनतेरस सबकी मनवाते हैं।।
यही सच्चे मायने होते हैं दीवाली के,
जान बूझ कर भी हम क्यों समझ नहीं पाते हैं????
अपनी तृष्णाओं पर अंकुश हम इस बार खुद ही लगाते हैं।
इनका होता नहीं अंत कभी,खटपतवार सा क्यों हम इन्हें
बढ़ाते हैं???
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