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मतभेद बेशक हो पर मनभेद ना हो(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*मतभेद बेशक हो जाए
पर मनभेद न हो*
बहुत ही गहरा होता है 
भाई बहन का नाता।
*एक ही परिवेश एक ही परवरिश*
बस दिल से हो इसे निभाना आता।।

*किसी भी नाते को निरस्त करने से बेहतर है उसे दुरुस्त करना*
बस समझ में आ जाए ये बात।

गलती गलती होती है गुनाह नहीं,
अपने तो होते हैं ईश्वर की सौगात।।

इस ईश्वर की सौगात को बस हो
सहेजना सबको आता।
मतभेद बेशक हो जाए पर मनभेद न हो,
बहुत गहरा होता है भाई बहन का नाता।।

पहले ही खो चुके हैं *कोहिनूर घर का*
अब तो एक ही माला में पिरें रहें मोती।
क्यों चटक रहा है ये धागा बार बार,
रफू की गुंजाइश भी हर धागे में नहीं होती।।

रिश्तों की  उधडन की मां करती रहती थी समय समय पर तुरपाई।
अब वो नहीं तो थामो सब अपने अपने सुई धागे,दरारों की बार बार नहीं होती भरपाई।।

प्रेम पुत्र और प्रेम सुता हो!
 प्रेम सीमेंट से भर दो दरारें मिल कर बहन भाई।।
एक की खुशी होती है खुशी दूजे की,
ये तेरे मेरे की कढ़ी किसने खिंडाई??
बड़े  संभाल लें छोटो को,
छोटे भी सम्मान की धारा बहाएं ।।
एक ही वृक्ष के हैं
 हम फल फूल पत्ते और हरी भरी शाखाएं।
विविधता है बेशक बाहरी स्वरूपों में हमारे,पर मन की एकता की मिलती हैं राहें।।

उसने बोला,इसने बोला,ये बोला,वो बोला छोड़ो ना अब ये पुरानी कहानी
*प्रेम ही सबसे ऊपर है* कहा करती मुझे अक्सर मेरे बच्चों की नानी।।

आज पिता का नाम करते हैं सार्थक
और एक अभिनव पहल की करते हैं शुरुआत।
कभी ना छोड़ेंगे एक दूजे का साथ
नहीं इससे सुंदर कोई बात।।
लम्हा लम्हा यूं हीं बीत रहे हैं दिन और रात
एक दिन यूं हीं सफर हो जाएगा जिंदगी का पूरा,
फिर मलालों की चल पड़ेगी बारात।।
आओ मतभेद भुला कर एक हो जाते हैं।
बहुत छोटी है जिंदगी गिले,शिकवे,शिकायतों के लिए,
आओ अपने नादान से दिल को ये 
सत्य समझाते हैं।।
स्नेह प्रेमचंद


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