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कर्मभूमि के रंगमंच पर(( विचार स्नेह प्रेम चंद द्वारा))

**कर्मभूमि के रंगमंच पर निभाया बखूबी आपने अपना किरदार**
शेष जीवन भी अति विशेष हो आपका,
हो जिंदगी खुशियों से गुलजार।।

**हौले हौले शनै शनै**
 दिन ये एक दिन आ ही जाता है।
कार्य क्षेत्र से हो सेवा निवृत,
व्यक्ति घर को आता है।।
**ज्वाइनिंग से रिटायरमेंट तक**
 इंसा पल पल बदलता जाता है।।
जाने कितने ही *अनुभव तिलक* जिंदगी भाल पर लगाता है।।
कभी खट्टे जब मीठे अनुभव,
हर अहसास से गुजरता जाता है।।

जीवन की इस आपाधापी में पता ही नहीं चलता,
 कब आ जाता है समय रिटायरमेंट का,
व्यक्ति यंत्रवत सा चलते जाता है।।
**हौले हौले शनै शनै**
दिन ये एक दिन आ ही जाता है।।

**आप खूब चले,खूब किए कर्म***
सकारात्मक नजरिए से खटखटाए 
सदा जिंदगी के द्वार।।
सबसे ताल मेल बिठाया,
सबको ले कर साथ चले आप हर बार।। 
लबों पर सजी रही सदा मुस्कान आपके,अपनेपन के हुए आप में सदा दीदार।।
*कर्मभूमि के रंग मंच पर*
निभाया बखूबी आपने अपना किरदार।।
शेष जीवन भी अति विशेष हो आपका,
दे रहा दुआएं पूरा हिसार परिवार।।

**आज घर की ओर चली घर की बागबान**
अब वक्त की न होगी कोई पाबंदी, 
समय की हो जाओगी धनवान।।
जिंदगी की आपाधापी में कई बार
कोई शौक धरा रह जाता है।
जीवनपथ हो जाता है अग्निपथ,
जिम्मेदारियों में खुद को इंसा फंसा हुआ पाता है।।
पर अब आई है वो बेला,
जब अपने हर शौक को आप परवान चढ़ाना।
 कभी घूमने जाना, जाड़ों की धूप सेंकना,अपनी ख्वाइशों को पंख लगाना।।
10 से 5.30 के भंवर में,
अब आप को नहीं है गोते खाना।
अपने समय के अब खुद ही मालिक हो,जो जी चाहे वो करते जाना।।
बरस 39 बिताए हैं आपने इस प्रांगण में,देखो इसको भूल न जाना।।
लम्हा लम्हा गुजरा वक्त इतना,
आज वो खास पल आपका स्वागत करने को है बेकरार।
कर्मभूमि के रंगमंच पर निभाया आपने बखूबी अपना किरदार।।

नौकरी का लगाया था कभी जो नन्हा पौधा,
आज वो परिपक्व वृक्ष फल देने को है तैयार।
है जब पेंशन फिर कैसी टेंशन,
अब तो रोज ही होगा इतवार।।
कर्मभूमि के रंगमंच पर निभाया बखूबी अपना किरदार।।

माना जिंदगी का *स्वर्ण काल* हम कार्यक्षेत्र में बिता देते हैं।
पर शेष बचा जीवन भी होता है **हीरक काल** ये क्यों समझ नहीं पाते हैं।।
सामाजिक और पारिवारिक जीवन का पूरा आनंद उठाना
यही दुआएं हैं किरण मैडम आज आपके लिए अनमोल खजाना।।
**अन्नदाता है हमारी एल आई सी**
इस सत्य को भूल ना जाना।।
गर आएं याद कभी ये एल आई सी वाले,बिन  निमंत्रण भी चली आना।।

बरस बिताए हों इतने जिसके आंगन में,
बन ही जाती है वो परिवार।
किरण हो आप तो उस आफताब की,
उजियारों से करता है जो जिंदगी का श्रृंगार।।
शेष जीवन भी हो अति विशेष आपका,
हो जिंदगी खुशियों से गुलजार।।
        स्नेह प्रेमचंद



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