खुशी नहीं मिलती बाहर से,
खुशी है भीतर का अहसास
कोई तो कुटिया में भी खुश है
किसी को महल भी नहीं आते रास
शुक्रिया या शिकायत
हम जिसका भी करते हैं इंतखाब
खुशी और गम का इनसे ही होता है हिसाब
शुक्रिया है खुशी का पड़ोसी
शिकायत गम का है साकी
जिसने समझ ली ये दो बातें
फिर अधिक समझना नहीं रहता बाकी।।
खुशी लेने में नहीं देने में।मिलती है
कभी किसी के दर्द उधारे ले कर देखो
खुशी महलों में ही होती
तो बुद्ध जंगल में ना जाते।
खुशी मनमानी में होती तो
राम पिता वचन न कभी निभाते।
भौतिक संसाधन आराम तो de sakte हैं पर खुशी की गारंटी नहीं दे पाते
खुद खुश रहने वाले ही सदा दूजो को खुशी है दे पाते।।
अंतर्मन के गलियारों में हम जब भी विचरण करने जाते हैं
खुशी बैठी होती है बांह फैलाए, हम हौले हौले उसके दामन में खुद को सिमटा हुआ पाते हैं
खुद की खुद से ही नहीं करा पाते मुलाकात
औरों को फिर क्या जानेंगे,
आत्म परिचय में ही हो जायेगा पक्षपात
अज्ञान के परदे हटा कर जब ज्ञान से होता है साक्षात्कार
खुशी के तो अपने आप ही हो जाते हैं सुंदर दीदार।।
खुशी फ्री में मिलती है खुशी की कोई कीमत नहीं होती
खुशी के पड़ोसी हैं प्रेम, करुणा, निर्मल चित,खुशी इनसे अलग ngin होती
मैने पुछा खुशी से रहती हो कहां
हौले से मुस्कुरा दी खुशी और बोली
कला,संगीत और साहित्य की त्रिवेणी सतत बहती है जहां।।
सृजन खुशी दे जाता है
मदद खुशी दे जाती है।।
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