Skip to main content

वही मित्र है(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))


मैने पूछा मित्रता से रहती हो कहां????
हौले से मुस्कुरा दी मित्रता और बोली **स्नेह,विश्वास और साथ की त्रिवेणी सतत बहती है जहां**

मैने पूछा मित्रता से," कैसे होते हैं मित्र??
 मित्रता ने तो एक लंबी सी फेरहिस्त बना दी और कहा
**ऐसे होते हैं मित्र**

**भोर होते ही जो आ जाए जेहनपीएल में,वही मित्र है** 

**संवाद सुस्ता भी जाएं पर संबंध गहराते जाएं,वही मित्र है**

**सहजता दामन नहीं चुराती संग जिसके, वही मित्र है**

**ना गिला ना शिकवा ना शिकायत हो चित में जिसके, वही मित्र है**

**अभाव का जिस पर प्रभाव न हो, वही मित्र है**

**रूह की चौखट पर जो दे जाए दस्तक,वही मित्र है**

**जो मात्र एक फोन कॉल की दूरी पर हो,वही मित्र है**

**जीवन के अग्निपथ को जो सहजपथ बना दे,वही मित्र है**

**ऊबड़ खाबड़ जिंदगी की राहों को जो समतल बना दे,वही मित्र है**

**थके थके कदमों की जो झट से बन जाए बैसाखी,वही मित्र है**

**जिनसे मिल कर रेगिस्तान हरे हो जाए, वही मित्र है**

**खुद मझधार में होकर भी जो साहिल का पता बताए,वही मित्र है**

**आहत मन को जो दे दे राहत, वही मित्र है**

**दिशाहीन से जीवन को जो दिशा प्रदान करे,वही मित्र है**

**दिल दिमाग दोनों में बिठा दे जो सामंजस्य,वही मित्र है**

**आम से जो हमे बना दे खास, वही मित्र है**

**हर ले तमस हो जीवन से और भर दे उजियारे, वही मित्र है**

**मोह मोह के धागे नहीं जो प्रेम के सहजता से बुन ले ताने बाने,वही मित्र है**

**मजहब,रंग, जाति,आर्थिक स्थिति जब मित्रता का आधार न हो,कृष्ण चित में सुदामा का जहां हो वास,वही मित्र है**

**हमारे चेतन और अचेतन दोनों मनों में जो बिन किसी औपचारिकता के वास करे,वही मित्र है**

**हमारी चेतना में जो उल्लास का कर दे सृजन,वही मित्र है**

**राम चित में सुग्रीव का जिस चित में होता वास हो,वही मित्र है**

**हर लम्हा जीवंत और खास बन जाए संग जिसके,वही मित्र है**

**अपनी जान दे कर भी जो कर्ण सी मित्रता निभा दे,दुर्योधन का साथ ना छोड़े,वही मित्र है**

**प्रफुल्लित तन और आह्लादित मन हो जाए संग जिसके,वही मित्र है**

**ऊर्जा की गंगोत्री से जो उल्लास की गंगा बहा दे,वही मित्र है**

**चित से अवसाद,विषाद,नैराश्य के जो धुंध कुहासे हटा दे,वही मित्र है**

**हमारा परिचय जो हमसे करवा दे, वही मित्र है**

**हमारे भीतर छिपी असीम संभावनाओं को जान कर जो हमे हमारे सद्गुणों से अवगत करवा दे,वही मित्र है**

**हमारी कमियों को दूर करने में जो आगे बढ़ कर हमारी मदद करे, वही मित्र है**

**कर्म बन जाए आनंद संग जिसके,वही मित्र है**

**समय का जिसके संग पता ही ना चले,वही मित्र है**

**चित में उल्लास रचाने लगे रास संग जिसके,वही मित्र है**
 
**अधर बेशक कुछ ना कहें पर पढ़ ले बिन चश्मे जो नयनों की भाषा, वही मित्र है**

**धूप छांव में जो संग खड़े हों,वही मित्र है**

**उदास लबों पर जो मुस्कान खिला दे,वही मित्र है**

*मैं हूं ना*कहते हुए जो जरा भी देर न लगाए,वही मित्र है**

**पल पल हो जो उत्सव बना दे,जीने की राह सरल बना दे,वही मित्र है**

**किसी भी हाल में कभी न छोड़े,हर जख्म का जो बन जाए मरहम,वही मित्र है**

**शब्द नहीं जो भाव चित के पढ़ ले,वही मित्र है**

**सब ठीक है कहने के बाद भी कुछ तो गड़बड़ है का अहसास हो जाए जिसको,वही मित्र है**

**खुशी गम साझा करने में जहां कोई संकोच न हो,वही मित्र है**

स्नेह,सहजता,उल्लास की रंगोली से जो रंग दे जीवन को,वही मित्र है**

**दोस्ती के इंद्रधनुष को जो खिला दे अनंत गगन में,वही मित्र है**

*संग का रंग* चढ़ जाता है  जिस पर,वही मित्र है**

** हमारी गलत बातों को जो हमे खुल कर बता दे,वही मित्र है**
सदा हां में हां मिलाने वाले सच्चे मित्र नहीं होते।।

**खामोशी की जो समझ ले जुबान, वही मित्र है**

**मतभेद बेशक हो जाए पर मनभेद न हो जिससे,वही मित्र है**

**मन में कोई गांठ न हो और अगर गांठ हो भी तो हो हौले से बिन बतलाए खोल दे,वही मित्र है**

**जो हमेशा हमें जज न करे हमें, हमारी स्वभाविकता और मूल स्वभाव संग अपनाए,वही मित्र है**

मुझे तो मित्र की यही परिभाषा समझ में आती है आपको???
     स्नेह प्रेमचंद

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

बुआ भतीजी

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व...