अपनी परी को,
उतना ही अपने बाबुल की
परी को भी चाहना।
मुझे तुझ में अक्स नजर
आता है बाबुल का,
है बात ये दिल की,
नहीं कोई उलाहना।।
*एक ही परिवेश
एक ही परवरिश*
हम दोनो ने बाबुल के
आंगन में पाई थी।
घर के हर किस्से कहानी में संग खड़ी तेरे, ये तेरी ही मां जाई थी।।
तब ना भाभी थी,ना बच्चे थे,
बचपन के सफर की मंजिल
संग संग ही पाई थी।।
बेशक बदल गई हों बाद में राहें जीवन की,
एक समय के बाद हुई मेरी भी विदाई थी।।
सब उलझे रहे हम
अपने अपने मोह मोह के धागों में,
समय ने अपनी गाड़ी दौड़ाई थी।।
अब हुए बड़े हम तब देखा मुड़ कर,
नई पीढ़ी ने अब अपनी पीइंग बढ़ाई थी।।
उम्र के हर मोड़ पर,
देख मुझे तूं कभी ना बिसारना
भाई जितना चाहता है
अपनी परी को,
अपने बाबुल की परी को भी चाहना।।
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