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बाबुल के दहलीज पार कराने के बाद

 कुछ मिला जुला सा लगता है बाबुल के लाडो को दहलीज पार कराने के बाद।
कैसा होता है मंजर,देख मां जाई को 
आ गया सब याद।।

*खुश भी होता है मन
 पर नयन भी होते हैं नम*
*बेटी की जितनी भी करो तारीफ,
उतनी है होती है कम*

सुनने में बेशक अच्छा लगता है बेटा हुआ है पर जीने में बेटी ही कण कण को करती है आबाद
कुछ मिला जुला सा लगता है बाबुल के बेटी को दहलीज पार कराने के बाद।।

एक बार तो लगता है जैसे कोई ले गया हो अचानक ही जीवन का सबसे अनमोल खजाना।
नम नयन,अवरुद्ध कंठ,धुंधलाया मंजर
चक्रव्यूह सी सोच,लगता है मुश्किल खुद पर काबू पाना।।
एक रिक्तता सी लगती है डसने,
बहुत मुश्किल सा होता है इससे बाहर आना।।
एक बेटी के मात पिता ही समझ सकते हैं कैसा होता है बेटी का जाना।।
लम्हा लम्हा फिर समझ को आ जाती है समझ **है तो ये दस्तूर ए जहान**
मात तात का कर्तव्य है,
सही समय पर करना कन्यादान।।
वो पराई हो कर भी सबसे अपनी होती है जैसे तन में होते हैं प्राण।।
*समझ को आ जाती ही समझ*
बेटी की विदाई हुई तो क्या *एक और बेटा भी तो मिला*
सच में सोच ही तो होती है प्रधान।।
मात तात को हो जाती है तसल्ली
है,हमारे से भी ज्यादा लाडो का ध्यान रखने वाला कोई,लाडो का हमसफर 
दो तन पर एक ही जान।।
नम नयन भी खुशी का करने लगते हैं आह्वान।।

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