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चंद लम्हों में कैसे कह दूं (( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

चंद लम्हों में कैसे कह दूं?????
  चंद लम्हों में कैसे कह दूं?????
*45 बरस की विविधता भरी दास्तान*
फर्श से अर्श तक का सफर तय करने वाली,
सच में, मेरी मां जाई बड़ी महान।।

सपने बुनते बुनते
 कब वक्त के लम्हे उधड़ गए,
पता ही नहीं चला,
और हो गया एक बहुत बड़ा सुराख।
नहीं लगा पाए आज तलक भी पैबंध कोई,
ना ही बना पाए कोई ऐसी खुराक।।
जिसे खा कर भूल जाएं तुझे,
समय भी जैसे हो गया स्तब्ध, 
आवाक।।

विषम हालातों में भी मां जाई!
मुस्कान रही,सदा तेरा परिधान।
चंद लम्हों में कैसे कह दूं,
45 बरस की विविधता भरी दास्तान।।

न आया क्रोध कभी,
न हुई कभी उद्वेलित,
खोजती रही हर समस्या का समाधान।
*यकीन को भी नहीं होता यकीन*
जिंदगी के रंगमंच से,
यूं हौले से कर जाएगी प्रस्थान।।
*सोच कर बोलती थी*
कभी नही बोला ऐसा 
जो बोल कर सोचना पड़े,
जन्मजात था तेरा व्यवहारिक ज्ञान।।
चंद लफ्जों में कैसे कह दूं???
बरस 45 की अदभुत अनोखी दास्तान।।

सही मायनों में डिप्लोमेट थी तूं मां जाई!
हौले से खिसक गई जिंदगी के रंगमंच से,
 हम देखते ही रह गए नादान।।
**मधुर था तेरा आगमन,
अकल्पनीय है तेरा प्रस्थान**
धूप हो या छांव हो,
मुस्कान रही तेरा परिधान।।
चंद लम्हों में कैसे कह दूं???
बरस 45 की प्रेरणा भरी दास्तान।।

रिश्तों के ताने बाने भी बुने बड़ी मधुरता से,
मनोभावों से नहीं तूं थी अंजान।
चेहरा और नयन भी झट पढ़ लेती थी
समझ जाती थी झट नातों का विज्ञान।।
चंद लफ्जों में कैसे कह दूं??
 45 बरस की अनोखी,अदभुत दास्तान।।

मां बाबुल ने बड़े प्रेम से
 किया था तेरा कभी कन्यादान।
*प्रेम विवाह* कर बड़े प्रेम से निभाया तूने अंतिम श्वास तक,
तुझे पाकर कौन नहीं होता धनवान??
*ब्यूटी,ब्रेन और बेस्ट बिहेवियर* की तूं त्रिवेणी,
तुझे बनाते हुए बहुत ही अच्छे मूढ़ में रहे होंगे भगवान।।
बस संघर्ष बैठा होगा संग में उनमें,
शायद इसे ही कहते हैं विधि का विधान ।
और परिचय क्या दूं तेरा????
क्या क्या करूं मां जाई गुणगान।।
चंद लम्हों में कैसे कह दूं??
45 बरस की अदभुत दास्तान।।

किसी भी क्रिया की प्रतिक्रिया ही
होती इंसा का व्यवहार।
ओ संयम की प्रकाष्ठा।
तुझ से जन्म नहीं लेते धरा पर बार बार।।
बहुत कुछ सीखा जा सकता है तेरे सोहर्सजीवन से,
मेरी मां जाई गुणों की खान।।
चंद लम्हों में कैसे कह दूं???

प्रेम ने करुणा से,
करुणा ने संयम से,
संयम ने सौहार्द से,
सौहार्द ने जिजीविषा से,
जिजीविषा ने कर्म से,
कर्म ने हौंसले से,
हौंसले ने भगति से,
भगति ने शक्ति से,
शक्ति ने मधुर वाणी से,
मधुर वाणी ने दिल से,
दिल ने दिमाग से;
पूछा कहां रहते हो तुम??
अपना अपना पता बताओ ना
सब एक ही सुर में साथ ही बोले
और कहां एक ही तो पता है हमारा
नाम है उसका अंजु कुमार
वहीं से शुरू हो कर वहीं 
खत्म हो जाता है हमारा संसार।।
कितने प्यारे मित्र थे तेरे मां जाई
अनुकरणीय हैं तेरे कदमों के निशान।।
चंद लम्हों में कैसे कह दूं
बरस 45 की अनोखी दास्तान।।

कर्म बदल सकते हैं भाग,
कर्म ही व्यक्ति की पहचान।।
चंद लफ्जों में कैसे कह दूं???
45 बरस की अनोखी दास्तान।।

*धड़धड़ाती सी ट्रेन से तेरे वजूद के आगे थरथराते पुल से लगे*
 और सब मुझे,
सच में तूं ईश्वर का वरदान।
तूं थी तो कोई और दिखता ही नहीं था, 
ऐसा था तेरा "औरा* ओ मेरी जान।।
चंद लम्हों में कैसे कह दूं????
बरस 45 की इंद्रधनुषी दास्तान।।

*ये वक्त के हाथों लम्हा गिरा कोई*
बन गई न भूली जाने वाली दास्तान।
जिक्र और जेहन में तो बस गई है ऐसी,
जैसे बच्चे के लिए मां ही होती है उसका जहान।।
ओ प्रेम की व्याकरण!
तूं प्रेम की गीता, रामायण,
 बाइबल कुरान।
तन और रूह दोनों ने ही पहना
सिर्फ और सिर्फ प्रेम परिधान।।
 चंद लम्हों में कैसे कह दूं???
बरस 45 की अनोखी अदभुत दास्तान।।

कुछ लोग जेहन में ऐसे बस जाते हैं
जैसे बच्चे घर में घुसते ही मां को आवाज लगाते हैं।
तूं उनमें शीर्ष पर रही सदा मां जाई!
फीका सा हो गया तुझ बिन जहान।।
चंद लम्हों में कैसे कह दूं????
45 बरस की अनोखी दास्तान।।

प्रेमसुता! तूं सबको
 प्रेम के मायने समझा गई।
*उच्चारण में नहीं आचरण में*
 रहा सदा विश्वास तेरा,
तूं हर मोड़ पर मुझ को भा गई।।
नहीं शब्दावली किसी शब्दकोश में ऐसी,
जो तेरे लिए मैं अपना स्नेह दिखा पाती।
नाम *स्नेह*है किया तुझ से स्नेह सदा,
तूं गहरी सांझ सी जेहन में रही सदा गहराती।।
सागर सी गहरी तूं,
देसी हो या परदेसी  सब बने तेरे कद्रदान।।
धीरज धरा सा,
सपने अनंत गगन से,
संकल्प से सिद्धि तक सार्थक परिणाम।।
11 स्वर और 33 व्यंजन भी नहीं सक्षम,
जो कर पाएं तेरा गुणगान।
मेरी छोटी सी समझ को नहीं आता  समझ ये,
क्या क्या करूं तेरा व्याख्यान।
चंद लफ्जों में कैसे कह दूं????
45 बरस की अदभुत दास्तान।।

जब धड़कन धड़कन संग बतियाती है,
फिर हर शब्दावली अर्थहीन हो जाती है।
*फिर मौन मुखर हो जाता है*
ये दिल का दिल से गहरा नाता है।।

ऐसी अनुभूति हुई आज तलक बस संग तेरे,
 बेशक दे ना पाई हों इन भावों को जुबान।
पर अहसास भी सफर करते हैं मां जाई! 
नहीं थी तूं इस सत्य से अनजान।।
चंद लम्हों में कैसे कह दूं????
45 बरस की अनोखी दास्तान।।
बहुत छोटा है शब्द तेरे लिए महान।।।

बहती नदिया सी बहती रही सदा तूं


        स्नेह प्रेम चंद



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