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संकल्प से सिद्धि तक(( दुआ स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

** संकल्प से सिद्धि तक छिपे होते हैं जाने कितने ही प्रयास**
नाव को गर मिल जाता है मांझी सागर में,
नाव आ ही जाती है साहिल के पास।।

लक्ष्य निर्धारण,फिर उसी दिशा में प्रयासरत,आम से बन देती है व्यक्ति को अति खास।।

चप्पे चप्पे में बन गए निशान उपलब्धियों के,
साथी सा बन गया है विकास।।
*एक एक करके बना कारवां*
अहम से वयम की राहों पर किया निवास।।

स्वच्छता,सौंदर्य, कला की बह गई त्रिवेणी निर्बाध गति से,
दूरदर्शी सोच नहीं होती सबके पास।।

प्रयासों की गंगोत्री से सफलता के गंगासागर तक आने वाली हर समस्या का कर दिया ह्रास।।
मातृभूमि का ऋण चुका देते हैं हम ऐसे,
स्वेच्छा से सुंदर नहीं,
 अति सुंदर हो जाते हैं प्रयास।।

आदर उम्र से नहीं कर्मों से मिलता है,
सबको इस सत्य का आभास।।
असली बैंक बैलेंस धन नहीं,
अच्छे लोग होते हैं,
भाग्यशाली है *हमारा प्यार हिसार* जो आप सरीखे अनुभवी हैं हमारे पास।।
*स्वास्थ्य लाभ* मिले सदा आपको,
दवा से दुआ होती हैं खास।।

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