*कहीं होता है आगमन
और कहीं होता है प्रस्थान*
यही फ़लसफ़ा है जीवन का,
यूं ही चलता है यह विहंगम जहान।।
*कहीं होती है धोरा की धरती
कहीं होती है घणी हरियाली*
बदलते रहते हैं मिजाज ए मौसम, कभी होली और कभी दिवाली।।
*कहीं होता है दमन और शोषण*
कहीं रामराज का बजता है डंका।
कहीं बुझ जाते हैं चिराग असमय ही,
कहीं जलती है सोने की लंका ।।
*कहीं शौक गुर्राते हैं निस दिन*
कहीं जरुरते सुस्त सी हैं हो जाती। सही 56 भोग महकते हैं बड़ी शान से,
सही सूखी रोटी भी मयस्सर नहीं हो पाती।।
बड़ी गहन विषमता की खाई है,
नहीं युगों युगों से पाटी जाती
कोई कहता है ये खेल है किस्मत का,मेरी छोटी सी समझ को बात बड़ी ये समझ नहीं आती।।
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