सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।।
स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार।
क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार।
ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है।
प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है।
दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति,
र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार।
थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार।
हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से,
ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार।
ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की,
मा--नासिक बल कर देता है उद्धार।
हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में,
क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार।
र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का,
म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार।
ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में,
न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार।
न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े,
र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार।
पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही,
व--श में हो जाता है उसके संसार।
त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन,
ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व्यवहार।
हि--म्मत की कावड़ में कर्म का जल तृप्त कर देता है आत्मा का संसार।।
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