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जीती जागती पाठशाला(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))


चं == दा सी चांदनी छिटकी आपके कर्मों की,
हर तमस,फैला दिए सर्वत्र उजियारे।
जाने कितने ही अनुभव तिलक लगे जिंदगी भाल पर,
संघर्षों से आप कभी ना हारे।।

द्र==  रिद्रता हर ली,ला दी समृद्धि हौसलों की,सद्विचारों की समृद्धि हो जन जन में सांझ सकारे।
संगठन में होती है शक्ति,
एक और एक होते हैं ग्यारह,
यही आपका चरित्र स्वीकारे।।

शे== खर से दमके आप अपने कर्मों से,
लेते रहे साथियों के दर्द उधारे।
एक एक करके बन ही जाता है कारवां,
बस *अहम से वयम* का बजे शंखनाद हर गली गलियारे।।

ख== नकता है जोश और उम्मीदें आपके अस्तित्व से,
जैसे भरे सागर में नाव होती है मांझी के सहारे।
नेतृत्व जब होता है आप सा,
काफिला देने लगता है दस्तक जिंदगी की चौखट पर,
खुद ही आ जाते हैं उजियारे।।

र== हें यूं हीं चमकते आप इस जग में,
कहें *जीती जागती पाठशाला* या *लिविंग लेजेंड*के फ्रेम में आपको उतारें।।
ओ भीष्म पितामह AIIEA के!
प्रेरणा हैं आप,साहस है आप,एक योजनाबद्ध तरीका हैं आप,
आप को किस किस गुणवाचक विशेषण से पुकारें???

बो== ला ही नहीं,आपने कर के भी दिखाया,उच्चारण नहीं,आचरण को जो अपने व्यक्तित्व में उतारे।
सोच,कर्म, परिणाम की त्रिवेणी बहाने वाले  शतायु बॉस जी बने
हारे के सहारे।।
AIIEA के महान संस्थापक!
एक ही जीवन में कितना कुछ किया जा सकता है, कोई सीखे आप से,कैसे चलते हैं भरे तूफान में किनारे किनारे।।

स== मावेश रहा आपके व्यक्तित्व में साहस,मेहनत और जोश का,
हर संबोधन और उद्बोधन अदभुत आपका, 
तर जाए,जो जीवन में उतारे।।
कर्म ही असली परिचय पत्र होते हैं व्यक्ति का,ऐसे कर्मठ बनते हैं सच्चे सहारे।।
       स्नेह प्रेमचंद


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