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अपने मिल जाते हैं जब अपनो से(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

अपने जब मिल जाते हैं अपनों से,
सच में गुल खिल जाते हैं।

मौसम की गर बात करें तो,
रेगिस्तान हरे हो जाते हैं।।।

बज उठते हैं ढोल नगाड़े,
जैसे सपने सच हो जाते हैं।
दूर देस से जाने कितने ही परिंदे
उड़ आशियानों में आते हैं।।

परिणय की इस मंगल बेला पर,
वे अपने दुआओं का झोला भर के लाते हैं।
उलीच देते हैं उन्हें फिर नव युगल पर,
तन पुलकित और मन हर्षित हो जाते हैं।।

अपने जब अपनों संग मिल जाते हैं
सच में रेगिस्तान हरे हो जाते हैं।।

तस्वीर मात्र नहीं ये दस्तावेज हैं यादों के,जो जेहन में,ताउम्र के लिए बस जाते हैं।
लम्हों का क्या है,ये तो यूं हीं जाते और आते हैं।।
           स्नेह प्रेमचंद
            

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