**दस्तक दिल पर,जेहन मे बसेरा,
चित में होते पक्के निशान**
और परिचय क्या दूं अपनों का??
यहीं खूबियां अपनत्व की पहचान।।
ना गिला ना शिकवा ना शिकायत कोई,मुस्कान ही होती रूह का परिधान।
रोज मिलें या ना मिलें अपनों से,
पर जब भी मिलें,दिल बन जाता गुलिस्तान।।
प्रेमवृक्ष का हो रहा विस्तार लम्हा लम्हा,आता है याद वो बागबान।।
आती है याद वो जननी,
हुए जिसके संस्कारों से हम धनवान।।
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