*चलो एक बार फिर से*
वर्तमान की दस्तक से
अतीत की चौखट खटखटाते हैं।
लम्हा दर लम्हा बीते बरस 25 कैसे??
दोनों मिल कर हिसाब लगाते हैं।।
दिया ईश्वर ने बहुत कुछ हमें,
उस ईश्वर का शुक्र मनाते हैं।।
नातों,मित्रों से परिपूर्ण सा हुआ जीवन,
उन अपनों के रंग में
खुद को रंगा हुआ पाते हैं।।
अक्षरज्ञान मिला हो बेशक किताबों से,
पर अनुभव ज्ञान तो जिंदगी की पाठशाला में हो समझ पाते हैं।।
अहसास को भी नहीं हो पाता अहसास,
सपने बुनते बुनते कब लम्हे उधड़ते
जाते हैं।
चलो ना एक बार फिर से खुद को खुद से मिलाते हैं।।
जिंदगी की इस आपाधापी में कुछ पल सुकून के चुराते हैं।।
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