*जब धड़कन धड़कन संग बतियाती है*
* हर शब्दावली अर्थ हीन हो जाती है*
फिर मौन मुखर हो जाता है,
ये दिल का दिल से गहरा नाता है।।
जब संवाद खत्म हो जाता है,
फिर संबंध पड़ा सुस्ताता है।।
हमसफर ही तो है संग जिसके,
हर पथ सुगम हो जाता है।।
लब वेशक कुछ बोलें या ना बोलें,
नयनों से सब समझ में आता है।।
मुस्कान के पीछे छिपी उदासी
प्रीतम ही देख बस पाता है।।
कहने से पहले ही जाने कैसे?
उसे सब समझ में आता है।।
खून का तो नहीं पर सच्चे समर्पण
विश्वास और प्रेम का ये गहरा नाता है।।
*समय संग जैसे हिना धानी से
श्यामल हो जाती है*
ऐसे ही ये प्रीत मीत की निस दिन
गहराती है।।
*जब धड़कन धड़कन संग बतियाती है*
फिर हर शब्दावली अर्थ हीन हो जाती है।।
स्नेह प्रेमचंद
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