Skip to main content

प्रेम रंग

प्रेम रंग में रंग दे रे रंगरेजा!
*बेकरार जीया को आ जाए करार*

अधूरी अधूरी सी पूरी हो जाऊं मैं,
*सांस सांस जुड़े तोसे दिल के तार*

लम्हा लम्हा करूं महसूस तुझे,
*रूह पर देना दस्तक तूं बारंबार*
मैं कपाट दिल के आ जाऊंगी खोलने,
*जैसे राधा को, 
हों शाम के मोहक दीदार*


*मोह मोह* के नहीं ये धागे,
है ये तो गहन प्रेम का अनंत विस्तार
तुम गगन के चंद्रमा
मैं तुम्हारी ज्योत्सना,यही मेरा घर संसार।।

फंदा फंदा बुना तुझे प्रेम डोर से,
प्रेम ही इस नाते का आधार।।
प्रेम से पहले आता सम्मान है,
बनाया मुझे उसका भी पूरा हकदार
किस किस बात के लिए करूं मैं,
उस ईश्वर का शुक्रगुजार???
हर्फ हर्फ है पढ़ा तुझे,
तेरे हर स्वर हर व्यंजन से 
हुई जिंदगी मेरी गुलजार।।

फुर्सत के चंद लम्हों की,
होती है मुझे प्रीतम दरकार।।
*कुछ किया दरगुजर,
कुछ किया दरकिनार*
यही मूल मंत्र सफल वैवाहिक जीवन का अपनाया मैने,
हर स्पीड ब्रेकर फिर कर लिया पार।।
मोहे प्रेम रंग में रंग दे रंग रेजा!
बेकरार जिया को आ जाए करार।।

अब धड़कन धड़कन से लगी है बतियाने,
कर ले माही! तूं भी स्वीकार
मेरे नयनों में पढ़ लेना चाहत मेरी,
हो सकता है कर नहीं पाऊं इजहार

जब लगे थकाने काम घणा
करेगी सोहबत मेरी ऊर्जा का संचार
समझ आने लगा है अब मौन तेरा,
*संवाद ही तो नहीं कहते हर बार*

सपने बुनते बुनते लम्हे उधड़ते गए
और बीत गए पूरे 18 साल
सच में किस्मत वालों को मिलते हैं तुझ से *पुर्सान ए हाल*
साथी यूं हीं सदा ये साथ निभाना,
मैं भी निभाउंगीं अर्धांगिनी का उम्दा किरदार 
सिया सी हर राह पर संग चलूंगी,
है,तुझ से ही जीवन में बसंत बहार।।
मोहे प्रेम रंग में रंग दे रे रंग रेजा
बेकरार जीया को आ जाए करार।।
सफर आसान हो गया जिंदगी का,
मिला तुझ सा  जो हमसफर दमदार
हर धूप छांव में संग संग तूं,
जैसे मांझी के हाथ में हो पतवार।।
सांस सांस में बसे हो ऐसे,
जैसे मोहन की मुरलिया के मधुर से तार।।
मैं तुझ से तूं मुझ से साजन,
अब तूं ही मेरा पूरा संसार।।
मैं धरा तूं गगन है प्रीतम
मैं संयम तूं अति विस्तार।।
,*मीरा सा पूजा, राधा सा चाहा*
रुक्मणि  सा पाया,
यही मेरे प्रेम का सार
विधि के विधान से है गुजारिश मेरी,
बने तूं हीं मेरा साजन हर बार।।



Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

बुआ भतीजी

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व...